Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: ૧૮ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : માહ :
विद्वद्वरेण्य,

समयसार जैसे पारमार्थिक और गूढ़ ग्रन्थों को जहाँ आपने सरल और सुलभ बनाया है, वहां
अपनी सूझ–बूझ के द्वारा विद्यार्थियों और विद्वानों का भी भविष्य उज्ज्वल बनाने का प्रयत्न किया है।
हमारी प्रार्थना पर आपने यहां आचार्य ‘शान्तिसागर भवन’ की मङ्गलमय आधारशिला रचना स्वीकार
किया है। यह मङ्गल कार्य युगयुगान्त–पर्यन्त जैन धर्म और विश्व–कल्याण की प्रेरणा के साथ एक
निर्ग्रन्थाचार्य की स्मृति को अमर रक्खेगा। इस सरस्वती भवन में विश्व में उपलब्ध सम्पूर्ण जैन वाङ्मय
का संग्रह करके जैन साहित्य और जैनधर्म की खोज का मार्ग प्रशस्त किया जायगा, जिसकी आज
भारी आवश्यकता है। विश्वविद्यालय के रिचर्स स्कालरों और शान्तिप्रेमियों के लिए यह भवन अत्यन्त
उपयोगी सिद्ध होगा–ऐसा हमारा विश्वास है। विश्व में सदा शान्ति बनी रहे यह स्व० आचार्य
शान्तिसागर महाराज की हार्दिक कामना थी, यही आपकी और हम सबकी भी मनोकामना है। हम श्री
शान्तिनाथ भगवान से प्रार्थना करते हैं कि विश्व में कहीं भी युद्ध न हो। इस प्रार्थना और प्रयत्न की
सफलता के हेतु हम आपका आशीर्वाद चाहते हैं।
अनुपम विद्याप्रेमी,

भगवान् महावीर के नाम से अङ्कित इस विद्यासदन में भगवान् शान्तिनाथ की तेजोमय मूर्ति भी
बिराजमान है। इससे हमको अपनी संस्था के महान् पवित्र उद्देश्य “चरित्रबल के विकास” में अनुपम
सहायता मिलती है। कला, विज्ञान, वाणिज्य आदि लौकिक शिक्षा के साथ–साथ यहाँ नैतिक एवं
धार्मिक शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था है। जिस प्रकार यहाँ भारत तथा विश्व के महामान्य राजनेता एवं
धुरन्धर विद्वानों का पदार्पण एवं स्वागत होता है; उसी प्रकार आत्मज्ञान एवं विश्व–बन्धुत्व का सन्देश
देनेवाले वीतराग महर्षियों और सन्तों की चरणरज एवं उपदेशों का प्रसाद भी समय–समय पर हमको
मिलता रहता है। आपकी असीम अनुकम्पा से यहाँ आज इस सरस्वती भवन की नींव रक्खी जा रही
है, इससे आगरा–निवासियों का ही नहीं अपितु समग्र समाज एवं भावी पीढ़ियों का उपकार होगा।
आपने हमारी प्रार्थना पर इस भवन की नींव रखना स्वीकार किया, यह हमारे लिए बडे़ गौरव की बात
है और इसके लिए हम आपके चिर आभारी रहेंगे।