Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: માહ : ૨૪૮૩ આત્મધર્મ : ૧૭ :
।। श्री सीमंधरस्वामीने नमः।।
भारत के महान् आत्मतत्वावेत्ता श्री कानजी स्वामीजी
की सेवा में सादर समर्पित
अभनन्दन पत्र
श्रद्धास्पद स्वामीजी,

समयसार के महान् व्याख्याता सुकविशिरोमणि स्वर्गीय पं० बनारसीदासजी की इस जीवन–भूमि
और उत्तर–प्रदेश के ऐतिहासिक नगर आगरा में आपका और आपके धार्मिक सङ्ध का स्वागत और
अभिनन्दन करते हुए हमको अतिशय गौरव का अनुभव हो रहा हैं। हम लोग बहुत दिन से सोगनढ़
(काठियावाड़) आदि स्थानों में आपके द्वारा स्थापित गौरवगाथाओं को सुन रहे थे और उनसे कुछ
परिचित भी थे किन्तु आज अपने नगर में ही सङ्ध सहित आपका पुण्यदर्शन प्राप्त कर के हमारे आनन्द
की कोई सीमा नहीं रही है।
सत्पपथ प्रदर्शक सन्त,

विज्ञान के इस युग में आपने जो चमत्कार दिखाया है वह महान् है क्योंकि वह चमत्कार किसी
भौतिक पदार्थ का नहीं, किन्तु आत्मा की अनुभूति का है। आत्मानुभूति के उस पवित्र आदर्श से प्रेरित
होकर ही, शत या सहस्र नहीं किन्तु कोटि–कोटि आत्माएँ आपसे प्रकाश और पथ–प्रदर्शन प्राप्त कर
अपना जीवन धन्य मान रही हैं। सभी प्रकार के अज्ञान और मिथ्यात्व के विरुद्ध आपने अपने जीवन के
प्रारम्भ से ही अभियान किया है। आप प्राणी मात्र को सहज स्वाभाविक ज्ञान दर्शन से चमत्कृत और
सुख–सम्पन्न देखना चाहते हैं, तथा प्रयत्न करते हैं, यह आपकी लोकोपकारिणी वीतराग वृत्ति का ही
स्वाभाविक परिणाम है।
लोकोपकारी महात्मन्,

मङ्गलमय महावीर, गौतमगणी और कुन्दकुन्द सद्रश महर्षियों की वाणी का आजीवन रसपान
करते कराते हुए आपने भौतिक पदार्थो की मोह–ममता से अपने आपको सदैव दूर रक्खा है और
आत्मस्वरुप में सहायक लोकोपकारी रचनात्मक कार्यों में ही अपने समय का सदुपयोग किया है,
जिसके फलस्वरुप आपके तत्त्वावधान में तीन लाख पुस्तकों का प्रकाशन,