Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: ૨૦ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : માહ :
परम आदरणीय,

काठियावाड़र की सुरम्य स्वर्णपुरी
(सोनगढ) में बैठकर आप भगवान कुन्दकुन्दाचार्य के सत्
साहित्य का जिस रोचक ढंग से प्रचार और प्रसार कर रहे हैं वैसा गत कई शताब्दियों में नहीं हुआ
है। अस्तु जसी शान्ति और नरपति जैसी द्रढ़ता के साथ आपके मुखाब्ज–निःसृत ओजस्वी अध्यात्म–
वाणी को सहस्त्रों नर–नारी व आबाल–वृद्ध बडे चाव से सुनते हैं और उसकी मधुरिमा से गद्गद् हो
जाते हैं। आपकी उस अविरल ज्ञान–वर्षा के प्रति हम नतमस्तक हो अपनी पुञ्जीभूत श्रद्धा व्यक्त
करते हैं।
अध्यात्म मूर्ति,

आप वह अगाध पवित्र तीर्थ हृदय हैं जिसमें क्रूर जन्तुओं का निवास नहीं है। आप वह दीप
शिखा हैं जिसमें काजल की कालिमा छू तक नहीं गई है। आप वह माणिक्य महानिधि हैं जिसे सर्पने
स्पर्श तक नहीं किया है। आपकी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरुप को
न्यायपूर्वक सिद्ध करने की अपूर्व शक्ति, जिनशासन का गम्भीर ज्ञान सभी अवर्णनीय है। अध्यात्म की
सर्वाङ्गपूर्ण और मौलिक व्याख्या करके आपने जो प्रयास किया है, वह अभिनन्दनीय है।
श्रीमान्,

आपने इस नगर में पधार कर हमारे कमल–कोमल अन्तराल में अपनी पवित्र स्मृति की एक
अमिट छाप छोड़ दी है। फाल्गुन कृष्णा द्वितीया की यह शुभ तिथि नगर के इतिहास में एक
चिरस्मरणीय घटना बन कर रहेगी। आपका ज्ञानालोके सदैव हमारे अन्तर में प्रकाशमान होता रहे–इस
भावना के साथ हम एक बार पुनः आपका स्वागत करते हैं।
‘स्वागत तेरा–तुम हो महान।’
हम हैं आपके–
सदस्यगण
महावीर जयन्ती सभा
६ फरवरी १९५७ फीरोजाबाद (उ० प्र०)