काठियावाड़र की सुरम्य स्वर्णपुरी
है। अस्तु जसी शान्ति और नरपति जैसी द्रढ़ता के साथ आपके मुखाब्ज–निःसृत ओजस्वी अध्यात्म–
वाणी को सहस्त्रों नर–नारी व आबाल–वृद्ध बडे चाव से सुनते हैं और उसकी मधुरिमा से गद्गद् हो
जाते हैं। आपकी उस अविरल ज्ञान–वर्षा के प्रति हम नतमस्तक हो अपनी पुञ्जीभूत श्रद्धा व्यक्त
करते हैं।
आप वह अगाध पवित्र तीर्थ हृदय हैं जिसमें क्रूर जन्तुओं का निवास नहीं है। आप वह दीप
स्पर्श तक नहीं किया है। आपकी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरुप को
न्यायपूर्वक सिद्ध करने की अपूर्व शक्ति, जिनशासन का गम्भीर ज्ञान सभी अवर्णनीय है। अध्यात्म की
सर्वाङ्गपूर्ण और मौलिक व्याख्या करके आपने जो प्रयास किया है, वह अभिनन्दनीय है।
आपने इस नगर में पधार कर हमारे कमल–कोमल अन्तराल में अपनी पवित्र स्मृति की एक
चिरस्मरणीय घटना बन कर रहेगी। आपका ज्ञानालोके सदैव हमारे अन्तर में प्रकाशमान होता रहे–इस
भावना के साथ हम एक बार पुनः आपका स्वागत करते हैं।