Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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संसारथी संतप्त जीवोने शांतिनी झांखी करावतुं अजोड आध्यात्मिक–मासिक
दुनिया करतां आत्माने राजी करो
जगतना जीवोए दुनिया राजी केम थाय अने दुनियाने गमतुं केम थाय एवुं तो
अनंतवार कर्युं छे, पण हुं आत्मा वास्तविक रीते राजी थाउं ने मारा आत्माने खरेखर
गमतुं शुं छे एनो कोईवार विचार पण नथी कर्यो, एनी कोईवार दरकार पण नथी करी.
जेने आत्माने खरेखर राजी करवानी धगश जागी ते आत्माने राजी कर्ये ज छूटको करशे
अने तेने ‘राजी’ एटले ‘आनंदधाम’ मां पहोंच्ये ज छूटको छे.....भाई! ...परनो आश्रय
छोडीने स्वतत्त्वनी रुचि करवी...प्रेम करवो...मनन करवुं ते ज सत्स्वभावने प्रगटाववानो
उपाय छे...जे पोतानुं हित चाहे ते आवुं करो.
[––पू. बेनश्रीबेन लिखित समयसार–प्रवचनोमांथी]