: माह : २४८३ आत्मधर्म : २१ :
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना–भरपूर
वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(२)
[वीर सं. २४८२ वैशाख वद त्रीज: समाधिशतक गा. २]
आत्मानी पूर्ण शुद्ध ज्ञान–आनंदमय दशा ते सिद्धपद छे. अने ज्ञान–आनंदस्वरूप आत्माने श्रद्धा–
ज्ञानमां लईने तेना संवेदनमां एकाग्रतानो उद्यम करवो ते मोक्षनुं अनुष्ठान छे. पूर्ण शुद्ध पदने पामेला सिद्ध
अने अरहंत परमात्मा ते देव छे; अने तेने साधनारा आचार्य–उपाध्याय–मुनि ते गुरु छे, तथा अरहंत
परमात्मा वगेरेनी वाणी ते शास्त्र छे.
पहेला श्लोकमां मंगलरूपे श्री सिद्ध भगवानने नमस्कार कर्या; हवे बीजा श्लोकमां सकल परमात्मारूप
श्री अरहंत भगवानने तथा तेमनी वाणीने नमस्कार करे छे:–
जयन्ति यस्यावदतोडपि भारती
विभूतयस्तीर्थकृतोडप्यनीहितुः।
शिवाय धात्रे सुगताय विष्णवे
जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः।। २।।
सकल परमात्मा श्री अरहंतदेवने नमस्कार हो. केवा छे ते परमात्मा?–के जेओ तालु–होठ वगेरेथी
बोलता न होवा छतां जेमनी वाणी जयवंत वर्ते छे. भगवाननी वाणी सर्वांगेथी ईच्छा वगर छूटे छे. ते
वाणीमां श्रेष्ठ छे, एवी भारती जयवंत वर्ते छे अने ते जीवोने तीर्थ एटले मोक्षमार्ग बतावनारी होवाथी तेने
तीर्थ पण कहे छे. भगवानने ईच्छा न होवा छतां तेओ समवसरणादि वैभव सहित छे अने तीर्थना कर्ता छे.
अरिहंत भगवान शरीर सहित होय छे तेथी ते सकल परमात्मा छे, ने शरीररहित सिद्ध परमात्मा ते निकल
परमात्मा छे.
अरहंत भगवाननुं शरीर महासुंदर परम औदारिक होय छे,–तेमां जोनारने पोताना आगला–पाछला
सात भव देखाय छे. (भविष्यना भव जेने होय तेने देखाय.)