: २२ : आत्मधर्म २४८३ : माह :
भगवानना समवसरणनो अचिंत्य वैभव होय छे; उपर त्रण छत्र फरता होय छे, मोतीना बनेला उत्कृष्ट छत्र
होय छे, तेमज भामंडळ वगेरे होय छे. आ रीते दिव्यवाणी अने छत्रादि वैभवसहित जेओ जयवंत वर्ते छे
एवा अरहंतदेवने नमस्कार हो.
अरहंत केवा छे? शिव छे, धाता छे, सुगत छे, विष्णु छे, जिन छे अने सकल आत्मा छे,–कई रीते? ते कहे छे––
शिव एटले आत्मानुं कल्याण, तेने पोते पामेला छे अने दिव्यवाणीना उपदेशवडे भव्य जीवोने
शिवमार्ग–मोक्षमार्गना प्रणेता होवाथी श्री अरहंत भगवान ज शिव छे, कल्याणरूप छे; एनाथी विरुद्ध बीजा
कोई खरेखर शिव नथी.
भव्य जीवोने मोक्षमार्गमां धारी राखनार होवाथी तेओज धाता छे. यथार्थ उपदेश वडे भव्य जीवोने
सन्मार्गमां धारी राखे छे तेथी तेओ ज विधाता छे. जेम विधाता लेख लखे छे एम लौकिकमां कहेवाय छे, तेम
भगवानना केवळज्ञानमां बधा जीवोना त्रणे काळना लेख लखाई गया छे–तेथी ते ज खरा विधाता छे.
शोभायमान एवा दिव्य ज्ञानने पामेला होवाथी अरहंत भगवानने सुगत कहे छे. गत एटले ज्ञान;
केवळज्ञान–वडे ज आत्मानी शोभा छे, तेथी जेओ एवा केवळज्ञानने पाम्या छे तेओ ज सुगत छे. अथवा
सुगत एटले सम्यग्गति; पुनरावर्तन रहित एवी जे मोक्षगति तेने पामेला होवाथी भगवान ज सुगत छे.
संसारनी चारे गति तो कुगति छे, ने सिद्धगति ते ज खरी सुगति छे, एवी सुगतिने पामेला होवाथी अरहंत
भगवान ज सुगत छे. अथवा ‘सुगत’नो त्रीजो अर्थ आ प्रमाणे पण छे : ‘सु’ एटले सम्पूर्णरूप एवा
अनंतचतुष्टय तेने ‘गत’ एटले पामेला एवा सर्वज्ञ देव ते सुगत छे.
सर्वज्ञदेव केवळज्ञानवडे समस्त वस्तुमां व्यापक होवाथी–ज्ञायक होवाथी–विष्णु छे.
अनेक भवभ्रमणना कारणरूप एवा जे मोहादि कर्मो (भाव तेमज द्रव्य) तेना विजेता होवाथी
अरहंतदेव ‘जिन’ छे. चैतन्यस्वभावनी अधिकतावडे मोहादिने जेणे जीती लीधा छे–नष्ट कर्या छे ते जिन छे.
अने सकल एटले शरीर सहित छे.
आवा अरहंत परमात्माने नमस्कार हो.
तेओ दिव्य भारतीवडे हितना उपदेष्टा छे. भगवाननी भारती केवी छे?–सर्वे जीवोने हितरूप छे, वर्ण
सहित नथी एटले के निरक्षरी छे, जेमां बे होठ चालता नथी. वांछारूपी कलंक नथी, कोई दोषरूप मलिनता नथी,
श्वासना रूंधन रहित होवाथी जेमां क्रम नथी, शांतमूर्ति ऋषिवरोनी साथे साथे पशुगणोए पण पोतपोतानी
भाषामां जेनुं श्रवण कर्युं छे, एवी सर्वज्ञदेवनी अपूर्ववाणी अमारी रक्षा करो ने विपदा हरो.
सर्वज्ञ भगवान शरीर सहित होवा छतां आहारादि दोषथी रहित छे. आत्माना अनंत आनंदनो
भोगवटो प्रगटी गयो छे त्यां क्षुधादि दोष होता नथी ने आहारादि पण होता नथी. भगवानने राग–द्वेषादि
दोषो पण नथी. आ सिवाय अन्य कुदेव तो रागादि सहित छे, क्षुधादि दोष सहित छे, एटले ते आत्मानुं ईष्ट
नथी. अतीन्द्रिय आनंद सहित एवुं सर्वज्ञपद ज आत्मानुं परम ईष्ट छे तेथी तेनो आदर करो तेने नमस्कार
करीए छीए.
सर्वज्ञ भगवाननो उपदेश आत्माना हितनुं कारण छे. संगथी पार थईने आत्माना स्वभाव सन्मुख
था, ते ज हितनो उपाय छे,–एम भगवाननो उपदेश छे. अरहंत भगवान ज सर्वज्ञ–हितोपदेशी छे, ते ज
ईष्टदेव छे. आ सिवाय बुद्ध वगेरे तो वस्तुस्वरूपने नहि जाणनारा अज्ञानी गृहीत–मिथ्याद्रष्टि छे, तेओ
हितोपदेशी नथी. आत्माना हितनो वास्तविक उपाय शुं छे ते जेणे पोते ज जाण्यो नथी, ते हितोपदेशी क्यांथी
होय? जगतमां तो अज्ञानी जीवोनो मोटो भाग एवा कुदेवादिने माने छे, पण ते कोई आत्माना हितोपदेशक
नथी. सर्वज्ञ–वीतराग–अरहंत परमात्मा ज जगतमां हितोपदेशक छे. तेओ कहे छे के “आत्मा पोते ज पोतानो
प्रभु छे, हुं प्रभु मारो, ने तुं प्रभु तारो: मारी प्रभुता मारामां ने तारी प्रभुता तारामां.–माटे तारा आत्मानी
ओळखाण करीने तेनी सन्मुख था, तेमां ज तारुं हित छे.”–आम सर्वज्ञदेव अरहंतपरमात्मा ज खरा
हितोपदेशी छे, तेओ ज ईष्ट देव छे, तेथी तेमने अहीं नमस्कार कर्या छे.
आ रीते परम हितोपदेशी एवा तीर्थंकर अरहंत परमात्माने तथा तेमनी दिव्य वाणीरूपी भारतीने
नमस्कार कर्या. ।। २।।