Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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मुद्रक:– हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग प्रेस. भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशक:– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ–भावनगर (सौराष्ट्र)
ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
महाशरण
सर्वज्ञदेवो समस्त कर्मने अविशेषपणे बंधनुं साधन
कहे छे तेथी (एम सिद्ध थयुं के सर्वज्ञदेवोए) समस्त कर्मने
निषेध्युं छे अने ज्ञानने ज मोक्षनुं कारण फरमाव्युं छे.
––जो समस्त कर्मने निषेधवामां आव्युं छे तो पछी
मुनिओने शरण कोनुं रह्युं? ते कहे छे:–
शुभ आचरणरूप कर्म अने अशुभ आचरणरूप
कर्म–एवा समस्त कर्मनो निषेध करवामां आवतां, अने ए
निष्कर्म अवस्था प्रवर्ततां मुनिओ कांई अशरण नथी;
कारण के ज्यारे निष्कर्म अवस्था प्रवर्ते छे त्यारे ज्ञानमां
आचरण करतुं–रमण करतुं–परिणमतुं ज्ञान ज ते
मुनिओने शरण छे; तेओ ते ज्ञानमां लीन थया थका परम
अमृतने पोते अनुभवे छे–आस्वादे छे.
[जुओ समयसार, कलश १०३–१०४]
राजा... भीख मागे छे!
पोताना आनंदनिधानने भूलेलुं...आत्माना
अतीन्द्रिय–आनंदने नहि पामेलुं आखुं जगत भीखारी छे,
केमके इंद्रिय–विषयो पासे आनंदनी भीख मांगी रह्युं छे...
तेने सर्वज्ञदेव अने संतो संबोधे छे के–
अरे विषयोना भीखारी! तुं तो चैतन्य राजा!!
राजा थईने तुं भीख कां मांग? तारामां तो
अतीन्द्रिय–आनंदना निधान भरेला छे तेने भूलीने तुं
इंद्रिय–विषयो पासेथी आनंदनी भीख कां माग!! ए
भीखारीपणुं छोड...ने तारा आनंद निधानने संभाळीने
अतीन्द्रिय आनंदने भोगव.
–पू. गुरुदेव.