Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म २४८३ : माह :
श्री सम्मेदशिखरजी वगेरे तीर्थधामोनी यात्रा निमित्ते
पू. गुरुदेवनो मंगल – प्रवास
(परमपूज्य श्री कहान गुरुदेवे सोनगढथी कारतक सुद पूर्णिमाए
तीर्थयात्रा निमित्ते मंगल विहार कर्यो...पालेजमां अनंतनाथ भगवाननी
वेदीप्रतिष्ठा तथा मुंबईमां महान प्रभावना करीने तेओश्री हाल विधविध
तीर्थधामोनी यात्रा संघसहित करी रह्या छे. पू. गुरुदेवना सोनगढथी धंधुका अने
मुंबईथी इंदोर सुधीना विहारना संस्मरणो आत्मधर्मना गतांकमां आपी गया
छीए. त्यारपछीना समाचारो अहीं संक्षेपमां आपवामां आवे छे. पू. गुरुदेव साथे
प्रवासमां होवाने कारणे आ समाचारो विस्तारथी नथी आपी शकता, ते बदल
जिज्ञासु ग्राहको क्षमा करे. सोनगढ आव्या बाद विस्तारपूर्वक यात्रावर्णन, ते ते
प्रसंगना फोटाओ सहित आपवानी भावना छे.)
–ब्र. हरिलाल जैन
: २ :

जैन समाजना सुप्रसिद्ध संत पूज्य श्री कानजीस्वामी सम्मेदशिखरजी वगेरे तीर्थधामोनी यात्रा माटे
लगभग परप भक्तोना एक मोटा संघ सहित विचरी रह्या छे. आ संघमां २४ मोटर तथा ८ मोटरबस छे. पू.
गुरुदेव संघसहित विधविध तीर्थधामोनी यात्रा करता करता आनंदपूर्वक विचरी रह्या छे ने गामेगाम हजारो
मुमुक्षुओ गुरुदेवनो उपदेश सांभळीने मंत्रमुग्ध बनी जाय छे. गुरुदेव ज्यां ज्यां पधारे छे त्यां त्यां जैन समाज
तेओश्रीना स्वागत माटे उमटी पडे छे.
पू. गुरुदेव मुंबईथी इंदोर पधार्या त्यां सुधीना संक्षिप्त समाचार आत्मधर्ममां आपी गया छीए.
सिद्धवरक्ट तीर्थनी यात्रा करीने संघ सहित पू. गुरुदेव ज्यारे इंदोर शहेर पधार्या त्यारे त्यांना जैन
समाजे घणा उमळकाथी पू. गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं. सर हुकमीचंदजी शेठना पुत्र भैयासाहेब राजकुमारसिंहजी
स्वागत–अध्यक्ष हता. आखा शहेरमां ठेकाणे ठेकाणे दरवाजा अने धजा–वावटाथी सजावट करवामां आवी हती.
लगभग पंदर हजारनी संख्यामां लोकोए भव्य स्वागत कर्युं. सौथी आगळ हाथी उपर धर्मध्वज, पाछळ
घोडेसवार तथा बेन्डवाजां वगेरेथी लगभग एक माईल लांबुं स्वागत जुलुस घणुं शोभतुं हतुं. पू. गुरुदेवना
प्रवचनमां आठ–दस हजारनी संख्यामां श्रोताजनो हररोज लाभ लेता हता. इंदोरना जैनसमाज तरफथी
भैयासाहेब श्री राजकुमारसिंहजीना हस्ते एक अभिनंदन पत्र पू. गुरुदेवने आपवामां आव्युं हतुं. मध्य
भारतना गृहप्रधान श्री मिश्रीलालजी गंगवाल पण प्रवचनमां आवता हता ने प्रवचन सांभळीने घणा
प्रभावित थया हता. तथा संत–समागमना महिमानुं एक भजन तेओ बोल्या हता. रात्रिचर्चामां पण दूरदूरथी
हजारो लोको आवता हता. पू. गुरुदेवनी अने संघनी व्यवस्था माटे एक मोटी