रहते धरा पर भी अहो तुम दिव्य जीवन मूल हो।
है पुन्य दर्शन अमृत उपदेशक तुम्हें साक्षात्कर।
जीवन नया हमको मिला है हो गए कृतकृत्यतर।
१२–२–५७
Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).
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