हजार वर्ष पहेलांंनी दि. जैनधर्मनी जाहोजलाली प्रसिद्ध करी रह्यां छे.
चोवीसीना श्री आदिनाथ आदि पांच तीर्थंकरोना जन्मकल्याणक अहीं थया छे. अहीं एक मंदिरमां श्री आदिनाथ
भगवानना मोटा प्रतिमाजी छे, तथा तेमनी आजुबाजु भरत–बाहुबली भगवंतोना मोटा प्रतिमाजी बिराजे
छे; त्यां जन्मकल्याणक संबंधी घणी भावभीनी अद्भुत भक्ति रात्रे पू. बेनश्रीबेने करावी हती. पू. गुरुदेव आ
शाश्वत जन्मधाममां भगवानना दर्शनथी घणा प्रसन्न थया.
विशेष भक्ति थई, तथा अनंतनाथ भगवाननी टूंक सरयु नदीना किनारे आवेली छे, त्यां पण विशेष पूजा–
भक्ति थई हती. यात्रा बाद पू. गुरुदेवे भावभर्युं प्रवचन कर्युं हतुं.
जन्मभूमि छे. त्यां संघ सहित यात्रा तथा भक्ति थई हती. अहीं ‘स्याद्वाद महाविद्यालय (जे गंगा नदीना
किनारे आवेलुं छे) तेनुं वार्षिक अधिवेशन पू. गुरुदेवनी छत्र छायामां थयुं हतुं, ते वखते विद्यालयना विद्वान
भाईओए प्रेमपूर्वक पू. गुरुदेवनुं सन्मान कर्युं हतुं.
समाजमां पण आनंदनुं वातावरण फेलाई जाय छे. ने पू. गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने जनता मुग्ध बनी जाय
छे. आ रीते सौराष्ट्रना आ संत जैनधर्मनो प्रभाव फेलावता फेलावता, अने नवा नवा तीर्थधामोनी अद्भुत
यात्रा करता करता, संघसहित भारतमां विचरी रह्या छे.