Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४८३ आत्मधर्म : ७ :
ता. १९ ना रोज कानपुरथी पू. गुरुदेव लखनौ पधार्या. जैन समाजे प्रेमपूर्वक स्वागत कर्युं. जैनबागनी
धर्मशाळामां उत्तरवा वगेरेनी सगवडता हती. अहींना म्युझीयममां घणा पुराणा जिनप्रतिमाजी छे. जेओ बे
हजार वर्ष पहेलांंनी दि. जैनधर्मनी जाहोजलाली प्रसिद्ध करी रह्यां छे.
लखनौथी ता. २० नी बपोरे नीकळीने वच्चे धर्मनाथ भगवाननी जन्मभूमि रत्नपुरीना दर्शन करीने
पू. गुरुदेव संघसहित अयोध्या पधार्या. अयोध्या ए तीर्थंकर भगवंतोना जन्मनी शाश्वतभूमि छे. वर्तमान
चोवीसीना श्री आदिनाथ आदि पांच तीर्थंकरोना जन्मकल्याणक अहीं थया छे. अहीं एक मंदिरमां श्री आदिनाथ
भगवानना मोटा प्रतिमाजी छे, तथा तेमनी आजुबाजु भरत–बाहुबली भगवंतोना मोटा प्रतिमाजी बिराजे
छे; त्यां जन्मकल्याणक संबंधी घणी भावभीनी अद्भुत भक्ति रात्रे पू. बेनश्रीबेने करावी हती. पू. गुरुदेव आ
शाश्वत जन्मधाममां भगवानना दर्शनथी घणा प्रसन्न थया.
ता. २१ना रोज पू. गुरुदेवे संघसहित पांचे भगवंतोना जन्मधामनी जात्रा करी...दरेक ठेकाणे
भगवंतोना चरणकमळ बिराजे छे; त्यां पू. गुरुदेवे भाव पूर्वक अर्घ चडाव्यो. श्री आदिनाथ भगवाननी टूंके
विशेष भक्ति थई, तथा अनंतनाथ भगवाननी टूंक सरयु नदीना किनारे आवेली छे, त्यां पण विशेष पूजा–
भक्ति थई हती. यात्रा बाद पू. गुरुदेवे भावभर्युं प्रवचन कर्युं हतुं.
ता. २२ना रोज पू. गुरुदेव बनारस (काशी)नगरे पधार्या. पं. कैलासचंद्रजी, पं. फूलचंदजी विगेरे अनेक
भाईओए प्रेमपूर्वक स्वागत कर्युं. अहीं जैनोना घर ३०–४० ज छे. पार्श्वनाथ वगेरे भगवंतोनी अहीं
जन्मभूमि छे. त्यां संघ सहित यात्रा तथा भक्ति थई हती. अहीं ‘स्याद्वाद महाविद्यालय (जे गंगा नदीना
किनारे आवेलुं छे) तेनुं वार्षिक अधिवेशन पू. गुरुदेवनी छत्र छायामां थयुं हतुं, ते वखते विद्यालयना विद्वान
भाईओए प्रेमपूर्वक पू. गुरुदेवनुं सन्मान कर्युं हतुं.
पू. गुरुदेव रोज नवा नवा तीर्थधामोनी यात्रा करतां खूब प्रसन्नताथी विचरी रह्या छे ने पू गुरुदेवनी
साथे साथे संघ पण घणा आनंदपूर्वक तीर्थयात्रा करी रह्यो छे. संघ सहित पधारवाथी आ तरफना जैन–
समाजमां पण आनंदनुं वातावरण फेलाई जाय छे. ने पू. गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने जनता मुग्ध बनी जाय
छे. आ रीते सौराष्ट्रना आ संत जैनधर्मनो प्रभाव फेलावता फेलावता, अने नवा नवा तीर्थधामोनी अद्भुत
यात्रा करता करता, संघसहित भारतमां विचरी रह्या छे.
जय हो जैनशासननो अने शासनप्रभावी संतोनो!