: ८ : आत्मधर्म २४८३ : माह :
बाळकोने केवा संस्कार पाडवा?
खूल्ला मेदानमां मोटा वृक्षनी छाया नीचे उपशांत वातावरणमां ईटोला गाममां
विद्यामंदिरमां नाना बाळको माटे पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
[मागशर शुद त्रीज : बुधवार]
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आ देहथी भिन्न आत्मतत्त्व छे, तेने ओळखवुं ते ज साची विद्या छे. अनंतकाळथी आत्मा चार गतिमां
रखडी रह्यो छे ने दुःख थाय छे, ते परिभ्रमण जेनाथी टळे ते ज साची विद्या छे. विद्या विनानो नर पशु कहेवाय
छे. कोई माणसने कहे के ‘तुं पशु जेवो छो–गधेडो छो’–तो तेने ते सारुं लागतुं नथी; पण जे भावथी पशु जेवो
अवतार मळे एवो भाव जो ते वर्तमानमां सेवी रह्यो छे तो ते पशु ज थशे. जे अत्यारे पशु थया छे तेमणे पूर्वे
माया–कपटना भाव कर्या हता, तेना फळमां ते पशु थया छे; अने मनुष्य थईने पण जेओ आत्मानुं ज्ञान करता
नथी ते तीव्र माया–दंभ–ठठ्ठा–मश्करी वगेरे भावो सेवे छे ते पण पशु थवानी ज तैयारी करी रह्यो छे, तेथी
ज्ञानी तेने पशु कहे छे.
आ मनुष्य अवतार पामीने पहेलेथी ज बाळपणथी आत्माना हितना संस्कार पाडवा जोईए. श्रीमद्
राजचंद्र १६ वर्षनी वयमां कहे छे के–
हुं कोण छुं! क्यांथी थयो! शुं स्वरुप छे मारुं खरुं!
कोना संबंधे वळगणा छे! राखुं के ए परिहरुं!
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्या!
तो सर्व आत्मिक ज्ञानना सिद्धांत तत्त्वो अनुभव्यां.
जुओ, आ कथन!! नानपणथी ज तेमने ऊंडा संस्कार हता. सात वर्षनी उमरे तो पोताने जातिस्मरण
एटले पूर्वभवमां मारो आत्मा क्यां हतो तेनुं भान थयुं. पछी आ काव्य तेमणे बनाव्युं छे. शरीरनी बालवय
हती पण आत्मा क्यां बाळक हतो?
आ देह ते कांई आत्मा नथी; देह तो क्षणभंगुर छे; आत्मा कांई क्षणभंगुर नथी, आत्मा तो अविनाशी
छे. वृद्ध, युवान के बाळक सौए आत्मानुं ज्ञान करवुं जोईए. देहनो कांई भरोसो नथी के आटला वर्ष सुधी ते
टकी ज रहेशे. नानी उमरमां पण घणानो देह छूटी जाय छे. देह जुदो छे ने देहने जाणनारो तेनाथी जुदो छे–एम
ओळखवुं जोईए. देह ए तो स्थूळ वस्तु छे, ने आत्मा तो सूक्ष्म वस्तु छे.
चणानी जेम आत्मामां मीठो स्वाद एटले के आनंदशक्तिरूपे रहेलो छे; पण अज्ञानदशामां तेनो स्वाद
आवतो नथी. जो सम्यग्ज्ञान करे तो अंतरना आनंदनो स्वाद आवे ने पछी तेने जन्म–मरण थाय नहि.
अरे जीवो! विचार तो करो के “हुं कोण छुं? ने मारे आ परिभ्रमण केम छे?” आ देह तो नवो मळ्यो
छे. २प–प० के १०० वर्ष पहेलांं कांई आ देह न हतो, माटे आ देह ते तमारी चीज नथी, तमे देहथी भिन्न
जाणनार तत्त्व छो. आ बधुं कोण जाणे छे? जाणनार तो आत्मा छे. आत्मा न होय तो आ बधुं जाणे कोण?
लाखोनी किंमतनो हीरो होय पण आंख न होय तो? आंख वगर कोण देखे? माटे आंखनी किंमत वधी के
हीरानी?–हवे आंख पण आत्मा वगर क्यांथी जाणे? आत्मा विना आ आंखना कोडा कांई जाणी शकता नथी,
माटे बधाने जाणनार एवा आत्मानो ज खरो महिमा छे. आवा आत्मानुं भान करीने पूर्ण परमात्मदशा आठ
वर्षना बाळकने पण थई शके छे, एम शास्त्रोमां उल्लेख छे. अरे! नानुं देडकुं–सर्प–हाथी ने सिंह वगेरेने पण
आवा आत्मानुं ज्ञान थई शके छे, पण ते माटे