Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 25

background image
बालब्रह्मचारिन्!
आपने अपने जन्मकालसे ही ब्रह्मचर्य व्रतके महत्वको न केवल अनुभव किया अपितु
उसे अपने जीवनमें उतारा भी है। आपकी इस पुनित चर्यासे प्रभावित होकर सैकडों भाई
व बहिन इस दुश्चर तपका पालन कर रहे है। आपके पावन निवाससे सोनगढ़ सबके लिए
तीर्थ बन गया है।
इस पावन प्रसङ्ग पर उपस्थित हम सब मुमुक्षुजन आपका अन्तःकरणसे अभिनन्दन
करते हुए अपने भावोंकी कुसुमाञ्जलि इस सम्मानपत्रके द्वारा सादर समर्पित करते है और
श्री १००८ जिनेन्द्र भगवान् श्री महावीरस्वामीका पुण्य नाम स्मरण कर यह मनःकामना
करते हैं कि आप अपने जीवनमें यथाजात रूपके अधिकारी बन चिरकाल तक मुमुक्षु
जनोंको साक्षात् मोक्षमार्गका पथ प्रदर्शन करतें रहें।
दालमियानगर विनयावनत
२५ फरवरी १९५७ डालमियानगर निवासी
। श्र ।
आध्यात्मिक संत परम श्रद्धेय श्री कानजी स्वामी
के चरणों में सादर समर्पित
मन्यवर!
यह हम सब लोगों का परम सौभाग्य है कि जिस महान् विभूति के पुण्य दर्शनों की
उत्कण्ठा हम वर्षों से अपने हृदयों में सजोंये हुये थे, वह आज आपके शुभागमन से पूरी हो
गई। आपके पुनीत दर्शनो से हम कितने सुखी, आपके अमृत तुल्य सदुपदेश से हम
कितने भावविभोर एवं आपके महान् व्यक्तित्व से हम कितने प्रभावित हुये हैं, इसका
प्रकाशन वाणी की शक्ति के परे की चीज है। सूर्योदयका प्रकाश पाकर जैसे कमल
विकसित हो उठता है, वैसे ही आपके दर्शन एवं अद्भुत प्रवचन–शैली से गया जैन समाज
का हृदय कमल विकसित हो उठा है।
त्याग तपस्याके प्रतीक!
आपके जीवनकी जो पवित्र पोथी समाज की आंखो के आगे खुली पडी़ है उसकी
कथा–गाथा का एक एक अध्याय, अध्याय का एक एक पन्ना और पन्ने की प्रत्येक पंक्ति
प्रेरणा के अपूर्व छन्द, आदर्श के एक अलौकिक संगीत और ज्ञान की एक दिव्य दीप्ति से
समुद्भासित है। विमल त्याग और कठोर तपस्या की निरन्तर आहुति से आपके हृदय में
१८ आत्मधर्मः १६१