Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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संसारथी संतृप्त जीवोने शांतिनी झांखी करावतुं अजोड आध्यात्मिक–मासिक
वर्ष १४ मुं
अंक प मो
फागण
वीर सं. २४८३
१६१
कयां भवनाशक जैनधर्म! अने कयां अनंत भवनो संदेह??
जैनधर्म रागनो रक्षक नथी पण रागनो नाश करीने वीतरागतानो उत्पादक छे, भवनो
नाश करीने मोक्षने आपनार छे. अनादिना मिथ्यात्वादिनो नाश करीने सम्यक्त्वादि अपूर्व भावो
प्रगटे तेनुं नाम जैनधर्म छे. भवनुं मथन करी नांखे,–भवनो नाश करी नांखे ते ज जैनधर्म छे.
हजी तो अनंत भवनी शंकामां जे पडयो होय, अरे! भव्यपणामां पण जेने शंका होय–एवा जीवने
तो जैनधर्मनी गंध पण आवी नथी. आहा! जैनधर्म शुं चीज छे तेनी वात लोकोए यथार्थ
सांभळी पण नथी. एक क्षण पण जैनधर्म प्रगट करे तो अनंतभवनो कट थई जाय ने आत्मामां
मोक्षनी छाप पडी जाय, मुक्तिनी निःशंकता थई जाय.–आवो जैनधर्म छे. आ ज जैनधर्मनी
श्रेष्ठता छे, तेथी हे भव्य जीव! भवना नाश माटे तुं आवा जैनधर्मने भाव.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)