Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page  


PDF/HTML Page 25 of 25

background image
ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
हे जीव! तुं आनंदनो भोक्ता बन!
पोताना स्वभावमां अतंर्मुख थईने आनंदने भोगववानो आत्मानो स्वभाव छे, पण
हर्ष के शोकरूप विकारने भोगववानो आत्मानो स्वभाव नथी. जराक प्रतिकूळता आवे के चिंता
थाय त्यां तो, अरेरे! मारो आत्मा चिंताना गंजथी घेराई गयो–एम अज्ञानीने लागे छे.....तेने
ज्ञानीओ कहे छे के–अरे भाई! चिंताथी घेराई जाय एवो तारा आत्मानो स्वभाव नथी. तारा
आत्मानो एवो अभोक्ता स्वभाव छे के चिंताना परिणामने ते न भोगवे.....माटे तुं मुंझा
नहीं.....चिंताना अभोक्ता एवा तारा ज्ञायक स्वभावने लक्षमां ले. ज्ञानस्वभावना लक्षे तने
ज्ञाता परिणामना अनाकुळ आनंदनुं वेदन थशे, ते आनंदना ज भोक्ता थवानो तारो स्वभाव छे.
ज्ञानीनेय कोई वार चिंता–परिणाम थाय, पण आवा आनंद–स्वभावना वेदननी अधिकतामां
तेमने चिंतानी अधिकता कदी थती नथी एटले तेमने मूंझवण थती नथी, शंका थती नथी; माटे
खरेखर ते ज्ञानी चिंताना के हर्षना भोक्ता नथी, तेनुं भोक्तापणुं तेमने विरमी गयुं छे; तेमने तो
आनंदनुं ज भोक्तापणुं छे. आम समजीने हे जीव! तुं पण अंतर्मुख थईने आनंदनो भोक्ता बन.
लक्षपूर्वक पक्ष
एकलो शांत निर्दोष ज्ञानस्वरूपी आत्मा छे तेनी द्रष्टि वगर बीजा लाख प्रकारे पण
कल्याण थतुं नथी.
जेनाथी कल्याण थाय छे एवा पोताना आत्मस्वभावनुं लक्ष करीने तेनो पक्ष जीवे कदी
कर्यो नथी.....अने जेना आश्रये कल्याण नथी एवा रागादि व्यवहारनो पक्ष कदी छोडयो नथी.
माटे संतो कहे छे के–
हे भव्य! जो तारे तारुं हित करवुं होय तो ए व्यवहारनो पक्ष छोडी दे.....ने तारा
आत्मस्वभावने लक्षमां लईने तेनो पक्ष कर.....तेना आश्रये तारुं कल्याण थशे.
आत्मार्थीने तो आ सांभळता ज अंदर आत्मानो महिमा गरी जाय के अहो! मारे आवी
चैतन्य वस्तुनुं अवलंबन ज करवा जेवुं छे.....अंतरमां आवुं लक्ष बंधाई जाय–एटले के ज्ञानना
निर्णयमां एक ज प्रकार आवी जाय के अहा! आ एक ज मारुं अवलंबन छे. ज्यां अंतरना
लक्षपूर्वक आवो पक्ष थाय त्यां प्रयत्ननी दिशा स्वभाव तरफ वळ्‌या विना रहे ज नहि.....एटले के
आत्माना आश्रये अल्पकाळमां तेने सम्यग्दर्शन थाय ज. (स. गा. ११ उपरना प्रवचनमांथी)
मुद्रकः हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग पे्रस, भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशकः स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ–भावनगर (सौराष्ट्र)