Atmadharma magazine - Ank 162
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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संसारथी संतप्त जीवोने शांतिनी झांखी करावतुं अजोड आध्यात्मिक–मासिक
वर्ष १४ मुं
अंक ६ ठ्ठो
चैत्र
वी. सं. २४८३
१६२
––एणे प्रभुता तरफ पगलां मांडया
जेने पोतानुं कल्याण करवुं होय तेणे ए नक्की करवुं जोईए के मारुं कल्याण
कोना आधारे छे?
मारा आत्मस्वभावमां ज मारी प्रभुता भरी छे, बीजा कोईना पण आधार वगर मारो
आत्मा पोते ज पोतानुं कल्याण करे, एवी मारी प्रभुता छे;– आम पोतानी प्रभुताने
ओळखीने तेनो आदर करवो ते ज कल्याणनो उपाय छे; जेणे आत्मानी प्रभुतानी प्रतीत करी
तेणे पोतानी प्रभुता तरफ पगलां मांडयां... प्रभु थवाना मार्गनी तेणे शरूआत करी.
कोई बीजो मने तारशे–एम जे माने छे ते पोतानी प्रभुताने मानतो नथी पण पोताने
पराधीन–गुलाम माने छे, ने तेथी ते संसारमां ज रखडे छे.
भाई! तारी प्रभुता तारामां भरी छे, तेने संभाळ तो तेमांथी तारी प्रभुता आवशे,
बहारथी नहि आवे.
–पू. गुरुदेव