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आ छे गुरुदेवनी घरगथ्थु शैलीनो एक नमूनो
जेम चणाना स्वभावमां मीठासनी ताकात भरी छे,
कचासने लीधे ते तूरो लागे छे ने वाववाथी ऊगे छे,
पण सेकतां तेना स्वभावनो मीठो स्वाद प्रगट थाय
छे ने पछी ते ऊगतो नथी;
तेम आत्मामां मीठास एटले अतीन्द्रिय आनंद
शक्तिरूपे भर्यो छे.
पण ते शक्तिने भूलीने ‘रागादि ते हुं, शरीर ते हुं’
एवी अज्ञानरूपी कचासने लीधे तेने पोताना आनंदनो
अनुभव नथी पण आकुळतानो अनुभव छे ने जन्म–
मरणमां अवतार धारण करे छे.
पोताना स्वरूप सन्मुख थईने तेमां एकाग्रतारूप
अग्निवडे सेकतां स्वभावना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
आवे छे ने पछी तेने अवतार थतो नथी.
आ चणानुं द्रष्टांत सेंकडो वार पू. गुरुदेवे प्रवचनोमां
आप्युं छे. तद्न घरगथ्थु सहेली भाषामां समजाववानी
पू. गुरुदेवनी केवी विशिष्ट शैलि छे–ते आ उपरथी
ख्यालमां आवशे.
आ रह्यो आनंदनो समुद्र
हे भाई! एक वार तारा आत्मानी सामे
नजर तो कर के अंदर शुं भर्युं छे!! जेम मोटो दरियो
ऊछळतो होय पण जोनार आंख बंध करे तो क्यांथी
देखाय? दरियो तो सामे ज छे पण आंख उघाडीने
जुए तो देखाय ने! तेम आ आत्मा पोते ज ज्ञान ने
आनंदथी भरेलो मोटो चैतन्यसमुद्र छे; पण शरीर ते
हुं ने राग जेटलो ज हुं एवी भ्रमणाने लीधे
अज्ञानीने ते चैतन्यसमुद्र देखातो नथी. जो ज्ञानचक्षु
ऊघाडीने अंतरमां देखे तो भगवान आत्मा देहथी ने
रागथी पार, ज्ञान अने आनंदथी भरेलो
चैतन्यसमुद्र ऊछळी रह्यो छे–ते देखाय.
मुद्रक : हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशक : स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ – भावनगर (सौराष्ट्र)