Atmadharma magazine - Ank 162
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८३ आत्मधर्म : १९ :
वेदन
प्रश्न:– ज्ञानीने शेनुं वेदन होय छे?
उत्तर:– साधकदशामां ज्ञानीने आत्माना ज्ञान–आनंदनुं वेदन होय छे; हर्ष–शोकनुं अल्पवेदन छे पण
तेमां एकता–बुद्धिपूर्वक तेनुं वेदन नथी, तेथी ते वेदननी मुख्यता नथी.
प्रश्न:– सर्वज्ञ परमात्माने शेनुं वेदन छे?
उत्तर:– सर्वज्ञ परमात्माने पोताना परिपूर्ण ज्ञान आनंदनुं ज वेदन छे, हर्ष–शोकनुं वेदन तेमने जरा
पण नथी.
प्रश्न:– अज्ञानीने शेनुं वेदन होय छे?
उत्तर:– अज्ञानी जीव हर्षशोकथी भिन्न पोताना ज्ञानानंद–स्वरूपने जाणतो नथी, तेथी ते हर्ष–शोकमां ज
एकाकार थईने तेने ज वेदे छे; ज्ञान–आनंदनुं वेदन तेने जरा पण नथी. बाह्य संयोगोने तो कोई पण जीव
वेदतो नथी.
प्रश्न:– ज्ञानीने ज्ञान–आनंदनुं वेदन, तेमज हर्ष–शोकनुं पण वेदन, एम बंने वेदन होवा छतां ‘तेने
एकला ज्ञान–आनंदनुं ज वेदन छे ने हर्षशोकनुं वेदन नथी’ एम केम कह्युं?
उत्तर:– जेनी साथे अभेदता छे तेनुं ज वेदन छे, ने जेनाथी भिन्नता छे तेनुं वेदन नथी–ए अपेक्षाए
ज्ञानीने ज्ञान आनंदनुं वेदन ज छे, ने हर्षशोकनुं वेदन नथी एम कह्युं छे. जे ज्ञान–आनंदरूप निर्मळ भाव
प्रगट्यो छे तेनी साथे आत्मानी अभेदता होवाथी ज्ञानी तेनो ज वेदक छे; अने जे हर्ष–शोक थाय छे तेने
पोताना स्वभावथी भिन्नपणे जाणतो होवाथी ज्ञानी तेनो वेदक नथी. जेना उपर द्रष्टि पडी छे तेनुं ज वेदन छे.
प्रश्न:– आनंदनुं वेदन केम थाय?
उत्तर:– मारो आत्मा ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, हर्ष–शोकादि भावो मारा स्वभावथी जुदा छे, एवुं भेदज्ञान
करीने, अंतरना ज्ञान–आनंदस्वरूप तरफ वळतां आत्माना आनंदनुं वेदन थाय छे. भेदज्ञान पछी साधक
दशामां जो के अल्प हर्ष–शोक थाय छे, छतां श्रद्धामां तो वेदननो एक ज प्रकार छे.
प्रश्न:– “श्रद्धामां वेदननो एक ज प्रकार छे” एटले शुं?
उत्तर:– धर्मी जीवनी द्रष्टि पोताना ज्ञानानंद स्वरूप उपर छे त्यां ते पोताना ज्ञानानंदस्वरूपने एकने ज
वेदे छे, हर्षादिना वेदनने धर्मीनी द्रष्टि पोतामां स्वीकारती नथी; माटे श्रद्धा अपेक्षाए तो धर्मीने एकला आनंदनुं
ज वेदन छे.
प्रश्न:– ‘चारित्र अपेक्षाए वेदनना बे प्रकार’ –कई रीते?
उत्तर:– धर्मी जीवने पोताना ज्ञानानंद स्वभावना भानपूर्वक जेटले अंशे तेमां लीनता थई छे तेटले
अंशे तो आनंदनुं वेदन छे, अने जेटला हर्ष–शोकरूप अस्थिरताना भाव छे तेटलुं आकुळतानुं वेदन छे, ए रीते
साधक दशामां वेदनना बंने प्रकार एक साथे वर्ते छे.
प्रश्न:– अज्ञानीना वेदनमां क्यो प्रकार छे?
उत्तर:– अज्ञानी “हर्ष–शोक वगेरे भावो ते ज हुं” एवी एकत्वबुद्धिने लीधे एकांत हर्ष–शोकादि भावोने
ज वेदे छे. एटले तेना वेदनमां दुःखनुं ज एकलुं वेदन छे.
प्रश्न:– सर्वज्ञना वेदनमां क्यो प्रकार छे?
उत्तर:– सर्वज्ञना वेदनमां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनो एक ज प्रकार छे, हर्ष शोकादिनुं वेदन तेमने जरापण
नथी. –आ रीते वेदन बाबतमां चार बोल थया.
प्रश्न:– वेदन बाबतमां चार बोल कई रीते थया?
उत्तर:– (१) सर्वज्ञने एकलुं आनंदनुं ज वेदन छे.
(२) अज्ञानीने एकलुं दुःखनुं ज वेदन छे.
(३) साधक ज्ञानीने अंशे आनंदनुं वेदन, तेमज अंशे दुःखनुं पण वेदन–एम बंने वेदन छे.
(४) साधकने बंने वेदन होवा छतां द्रष्टि अपेक्षाए एकलुं आनंदनुं ज वेदन छे. हर्ष–शोकादिने पोताना
स्वभावमां एकपणे ते वेदतो ज नथी.
–आ राते वेदनना चार बोल छे. तेमांथी आ समयसारनी ७८मी गाथामां अत्यारे चोथा बोलनी वात
चाले छे.
(–श्रावण–पूर्णिमा–वात्सल्यदिने स. गा. ७८ना प्रवचनमांथी)