Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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संसारथी संतप्त जीवोने शांतिनी झांखी करावतुं अजोड आध्यात्मिक–मासिक
साचुं मार्गदर्शन

जीवोने आ आत्मस्वभावनी वात मोंघी पडे एटले बीजो रस्तो लेवाथी धर्म थई जशे–
एम तेमने ऊंधुंं शल्य पेठुं छे. पण भाई! अनंत वरस सुधी तुं बहारमां जोया कर तो पण
आत्मधर्म न प्रगटे; माटे परनो आश्रय छोडीने स्वतत्त्वनी रुचि करवी...प्रेम करवो...मनन करवुं
ते ज सत् स्वभावने प्रगटाववानो (धर्मनो) उपाय छे. जे पोतानुं हित चाहे छे ते आवुं करो–
एम आचार्यदेव कहे छे.
जेने पोतानुं हित करवुं होय तेने आवी गरज थशे.
(–पू. बेनश्रीबेन लिखित समयसार–प्रवचनोमांथी)