हि.त.व.च.नो
(१) जीवने सुख वहालुं छे, दुःख वहालुं नथी.
(२) मोक्षपद ज आत्माने परम सुखरूप छे; बाह्यमां सुख नथी.
(३) जो संयोगोमां सुख होत तो, तीर्थंकर–चक्रवर्ती वगेरे महापुरुषो, राज्यादि वैभवने छोडीने केम चाल्या
गया? अने आत्मसाधनामां केम एकाग्र थया?
(४) ते महापुरुषोए एम जोयुं के आत्मामां ज सुख छे, संयोगोमां सुख नथी; तेथी संयोग तरफनुं वलण
छोडीने तेओ स्वभावमां एकाग्र थया.
(प) स्वभाव तरफनी एकाग्रता ते सुखनी जनेता छे, संयोग तरफनी तृष्णा ते दुःखनी जनेता छे.
(६) हे जीव! एक वार एम द्रढ विश्वास कर... के अंतर्मुख थये ज मारुं हित छे; बहिर्मुखपणामां मारुं हित
नथी––आवो द्रढ विश्वास करीश तो अंतर्मुख थवानो अवसर आवशे... ने तारुं हित थशे.
(७) काळकूट सर्पनुं झेर तो एक वार मरण करे (–अने ते पण आयुष्य खूट्युं होय तो), परंतु ऊंधी द्रष्टिरूप
मिथ्यात्वनुं झेर तो संसारमां अनंत जन्म–मरण करावे छे; माटे हे जीव! अनंत चैतन्यशक्तिथी भरेला
तारा अमृतस्वरूप आत्माने ओळखीने तेना अनुभवनो उद्यम कर, ते ज अनंत जन्म–मरणथी तारा
आत्माने उगारनार छे.
(८) हे जीव! तुं तारी आत्मशक्तिनो विश्वास कर; तारी शक्ति नानी (–क्षणिक विकार जेवडी) नथी, तारी
शक्ति तो मोटी छे, अनंत शक्तिथी तारो आत्मा महान छे. सिद्धभगवान जेटली महान शक्ति तारामां
छे, तो तारे बीजानी शी जरूर छे? माटे तुं तारी शक्तिनो विश्वास कर. तारी शक्तिना अविश्वासने लीधे
ज, बहारमां भटकी भटकीने तुं दुःखी थई रह्यो छे.
(९) बहारना संयोग–वियोगमां हर्ष–शोक करीने तेना वेदनमां अज्ञानी एवो मूर्छाई जाय छे के तेनाथी भिन्न
आत्मानुं अस्तित्व ज भूली जाय छे. जराक प्रतिकूळतानी भींस आवे त्यां तो एवो भींसाई जाय के जाणे
आत्मा खोवाई ज गयो, पण अरे भाई! एवा संयोग–वियोग संसारीने न आवे तो शुं सिद्धने आवे!!
संयोग–वियोग के हर्ष–शोक सिद्ध भगवानने न होय, नीचली दशामां तो ते होय. ––परंतु ते होवा छतां, हुं
तो तेनाथी भिन्न ज्ञान–स्वभावी सिद्ध समान छुं––एम शुद्ध आत्माने ध्येयरूपे राखीने तेना तरफ वलण कर
तो तारुं परिणमन सिद्धदशा तरफ थया करे ने सिद्ध भगवान जेवा अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन खीलतुं जाय.
सुवर्णपुरी–समाचार
परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिमा बिराजे छे.
तीर्थधाम सोनगढमां बधा कार्यक्रमो पूर्ववत् व्यवस्थित चाले छे. सवारे प्रवचनमां श्री गुजराती
पंचास्तिकाय पहेलेथी वंचाय छे, ने बपोरे श्री समयसार–संवरअधिकार वंचाय छे. सांजे भक्ति तथा रात्रे
तत्त्वचर्चा विगेरे कार्यक्रमो पूर्ववत् नियमित चाले छे.
पू. गुरुदेवनो ६८ मो जन्मोत्सव आ वखते अमदावाद शहेरमां ऊजवायो हतो. आ प्रसंगे गुरुदेवने
अभिनंदनरूपे मुमुक्षु भक्तजनोना प्रवचन थया हता, ते उपरांत देशोदेशना मंगलसंदेश आवेला ते
संभळाववामां आव्या हता; अने ६८ नी रकमनुं फंड थयुं हतुं. आ फंडमां अत्यार सुधी लगभग आठ हजार रूा.
थया छे. (आ फंडनो उपयोग जिनमंदिरना कार्यमां करवानुं नक्की थयुं छे.)
नवा प्रकाशनमां गुजराती पंचास्तिकायनुं छापकाम चाली रह्युं छे.
भक्ति माटे उपयोगी पुस्तक
भारतवर्षना सर्व तीर्थक्षेत्रो तथा अतिशय क्षेत्रोमां पूजा समये उपयोगी उत्तम पुस्तक ‘श्री जैन
तीर्थपूजा पाठसंग्रह’ छपाईने बहार पड्युं छे. आ पुस्तक ऊंची जातना कागळ पर छपायुं छे अने कपडाना
पूंठाथी बंधायेलुं छे; लगभग ३०० पृष्ठो छतां किंमत फक्त १–७–०
आत्मधर्मना ग्राहकोने
आ अंकथी “आत्मधर्म”नुं प्रकाशन आनंद प्रेस–भावनगरथी थाय छे. अत्यार सुधी तेनुं प्रकाशन
वल्लभविद्यानगरथी थतुं तेने बदले हवेथी भावनगरथी थशे. अने व्यवस्था पण त्यांथी ज थशे; माटे व्यवस्था
बाबतनो पत्रव्यवहार हवेथी नीचेना सरनामे करवो :–
आनंद प्रेस–भावनगर
वार्षिक लवाजम रूपिया त्रण : : : छूटक नकल चार आना