ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
मृतक कलेवरमां मूर्च्छा
पांच ईन्द्रियोथी अने मनथी मने किंचित् पण लाभ थाय–एवो जेनो अभिप्राय छे ते जीव अचेतन
शरीरमां ज मूर्छायेलो छे, चैतन्यमूर्ति भगवान आत्माने ते जाणतो नथी.
चैतन्य भगवान आत्मा पोते मननो के ईन्द्रियोनो विषय थतो नथी, ते तो अंतर्मुखी अतीन्द्रिय
ज्ञाननो ज विषय छे. आवा आत्मानी अज्ञानीने खबर नथी, तेथी ते ईन्द्रियमनना विषयोमां ज लुब्ध छे.
जेम केशरीसिंह पोताने बकरुं मानीने वाडामां पूराई जाय तेम परमपुरुषार्थी चैतन्यसिंह पोताने जड
शरीररूपे मानीने अज्ञानने लीधे आ संसाररूपी जेलमां पूरायो छे... अहो! आ चैतन्यमूर्ति अमृतस्वरूप
भगवान आत्मा, पोताने भूलीने, मृतक–कलेवर जडपिंडमां मूर्च्छाई पड्यो!
अविकारी आनंदनी अनुभूतिने बदले, अज्ञानथी क्रोधादि विकारनो ज कर्ता थईने अज्ञानी तेने ज
अनुभवे छे. ज्ञानी तो भेदज्ञानना बळथी चैतन्यने अने क्रोधने जुदा पाडीने, पोताना आनंदमय चैतन्यरसने
ज अनुभवे छे. अज्ञानी तो मृतककलेवरमां एवो मूर्छाई गयो छे के तेनाथी जुदो चैतन्यस्वभाव तेने देखातो
ज नथी.
(स. गा. ९६ प्रवचनमांथी.)
हे जीव! स्वसमयमां प्रवृत्ति कर
ज्ञान समस्त अचेतन पदार्थोथी जुदुं ज छे. जेम धर्मास्तिकाय के झाड वगेरे द्रव्यो जीवने पराणे खेंचीने
चलावता नथी के रोकता पण नथी, तेमज ते पदार्थो ज्ञानने पराणे पोताना तरफ खेंचता नथी के रोकता पण
नथी. ते धर्मास्तिकाय के झाड वगेरे अन्य पदार्थोनी जेम ज कर्मो पण जीवथी जुदी ज वस्तु छे; तेथी ते कर्मो पण
जीवना ज्ञानने कांई करता नथी. जीव ज्यारे पोताना ज्ञानस्वरूपथी खसे छे त्यारे ज तेने राग–द्वेष–मोह थाय
छे, पण कर्मो कांई तेने राग–द्वेष–मोह करावतां नथी. जीव जो पोताना ज्ञानस्वरूपमां रहे तो तेने राग–द्वेष–मोह
थता नथी.–आम जाणीने, हे जीव! तुं स्वसमयमां प्रवृत्ति कर एटले के दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप तारा
आत्माने ओळखीने तेमां एकाग्र था; अने परसमयथी निवृत्ति कर एटले के कर्म वगेरेनुं लक्ष छोडी दे.
(पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी)
मुद्रक :– हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशक :– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ–भावनगर (सौराष्ट्र)