
कर्या हता ते अहीं आपवामां आवेल छे. श्रीमान् पंडितजी दिगंबर जैन समाजना एक अग्रगण्य
विद्वान छे, अने अत्यारना दिगंबर जैनसमाजना पंडितोमांथी मोटा भागना पंडितो तेमनी पासे
भणेला छे, तेमनुं आ भाषण छे.)
बोलतां बोलतां पंडितजी एकदम गळगळा थई गया हता अने थोडीवार सुधी बोली शक्या न हता. त्यारबाद
आगळ चालतां तेमणे कह्युंः–) अनंत चोवीसीना तीर्थंकरो अने आचार्योए सत्य दिगंबर जैनधर्मने अर्थात्
मोक्षमार्गने प्रगट करनारो जे संदेश संभळाव्यो ते ज आमनी (कानजीस्वामीनी) वाणीमां आपणा
सांभळवामां आवी रह्यो छे; ते सांभळतां ज सहेजे प्रतीत थई जाय छे अने पदार्थनुं यथार्थ श्रद्धान थई शके छे.
के शास्त्रथी ते प्राप्त थई जाय–एम नथी, ते तो अंतरंगनी चीज छे. अमारी तो भावना छे के सम्यग् द्रष्टि प्राप्त
थाय के जेना प्रतापथी आत्माने स्वरूपनी प्राप्ति थई जाय. सम्यग्द्रष्टि थया पछी आपणुं जे कांई जाणवुं छे ते
सम्यग्ज्ञान छे, अने जे आचरण छे ते सम्यक्चारित्र छे. सम्यग्दर्शनपूर्वकना ज्ञान–चारित्रथी ज मुक्ति थशे, तेना
सिवाय बीजुं कोई शास्त्रीय ज्ञान के दैहिक क्रियाकांड मोक्षमार्ग नथी.–आ वात स्वामीजी समजावी रह्या छे.
थई रह्युं छे.
स्वयं परमात्मा बनशो. ए ज मार्ग आजे आ संत पोताना प्रवचनमां दर्शावी रह्या छे. महावीर भगवाने जे कह्युं
अने कुंदकुंद आदि आचार्योए जे कह्युं ते ज आजे आ (महाराजश्री) प्रसिद्ध करी रह्या छे. (सभामां हर्षनाद)
स्वतंत्रतानो मार्ग दर्शावनारा आवा संत मल्या.
जेठः २४८३