Atmadharma magazine - Ank 164
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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सम्मेदशिखरजीनी यात्रा प्रसंगे
मधुवनमां श्रीमान पंडित बंसीधरजी साहेब (इन्दोर) नुं
भावभीनुं भाषण
(मधुवनमां ता. १६–३–प७ फागण वद एकमना रोज पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद ईंदोरना
पंडित बंसीधरजीए घणा गदगद भावथी भाषण करीने, पू. गुरुदेव प्रत्ये पोताना जे भावो प्रगट
कर्या हता ते अहीं आपवामां आवेल छे. श्रीमान् पंडितजी दिगंबर जैन समाजना एक अग्रगण्य
विद्वान छे, अने अत्यारना दिगंबर जैनसमाजना पंडितोमांथी मोटा भागना पंडितो तेमनी पासे
भणेला छे, तेमनुं आ भाषण छे.)
*
पहेलांना कार्यक्रम अनुसार एवी आशा हती के आ अमृतथी भरेलो कुंभ फरीने प्राप्त थशे....परंतु....हवे
प्रोग्राम बदली जवाथी (पू. स्वामीजी आजे ज अहींथी प्रस्थान करशे तेथी) आ वाणी सांभळवा नहीं मळे. (आम
बोलतां बोलतां पंडितजी एकदम गळगळा थई गया हता अने थोडीवार सुधी बोली शक्या न हता. त्यारबाद
आगळ चालतां तेमणे कह्युंः–) अनंत चोवीसीना तीर्थंकरो अने आचार्योए सत्य दिगंबर जैनधर्मने अर्थात्
मोक्षमार्गने प्रगट करनारो जे संदेश संभळाव्यो ते ज आमनी (कानजीस्वामीनी) वाणीमां आपणा
सांभळवामां आवी रह्यो छे;
ते सांभळतां ज सहेजे प्रतीत थई जाय छे अने पदार्थनुं यथार्थ श्रद्धान थई शके छे.
सम्यग्दर्शन शुं चीज छे अने ते केटली महत्वनी चीज छे–ते आप समजावो छो. द्रष्टि अंतरनी चीज छे,
तेनो कोइ पढवा–लखवा साथे संबंध नथी. अंतरनी द्रष्टि थवानो संबंध शास्त्रनी साथे नथी, तेमज अमुक क्रियाथी
के शास्त्रथी ते प्राप्त थई जाय–एम नथी, ते तो अंतरंगनी चीज छे. अमारी तो भावना छे के सम्यग् द्रष्टि प्राप्त
थाय के जेना प्रतापथी आत्माने स्वरूपनी प्राप्ति थई जाय. सम्यग्द्रष्टि थया पछी आपणुं जे कांई जाणवुं छे ते
सम्यग्ज्ञान छे, अने जे आचरण छे ते सम्यक्चारित्र छे. सम्यग्दर्शनपूर्वकना ज्ञान–चारित्रथी ज मुक्ति थशे, तेना
सिवाय बीजुं कोई शास्त्रीय ज्ञान के दैहिक क्रियाकांड मोक्षमार्ग नथी.–आ वात स्वामीजी समजावी रह्या छे.
दुःखथी छूटवा माटे अने सुखनी प्राप्तिने माटे जैन तीर्थंकर–आचार्योए कह्युं छे के–तमे स्वयं परथी भिन्न
आत्मानुं ज्ञान करीने, अंतरात्मा थईने परमात्मा बनी शको छो;–एनुं प्रतिपादन अहीं महाराजजीना प्रवचनमां
थई रह्युं छे.
पराधीन बनावीने, भक्त बनावीने, शरणमां लईने मोक्ष देवानी वात करवी ते तो परतंत्रता छे.
तीर्थंकरोए स्वतंत्रतानी वात करी छे. परथी विभिन्न आत्माने पोते पोतामां जाणीने अने तेमां स्थिर थईने तमे
स्वयं परमात्मा बनशो. ए ज मार्ग आजे आ संत पोताना प्रवचनमां दर्शावी रह्या छे. महावीर भगवाने जे कह्युं
अने कुंदकुंद आदि आचार्योए जे कह्युं ते ज आजे आ (महाराजश्री) प्रसिद्ध करी रह्या छे. (सभामां हर्षनाद)
आवा आध्यात्मिक संतोए स्वयं पोताने आनंदित बनाव्या छे अने वीतरागता तथा स्वतंत्रतानी घोषणा
करीने तेनो ज उपदेश दई रह्या छे. ते मार्गमां आवनारा मुमुक्षुओ पण पोताने महासद्भागी माने छे के–अमने
स्वतंत्रतानो मार्ग दर्शावनारा आवा संत मल्या.
जेठः २४८३
ः ९ः