– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना–भरपूर
वैराग्यपे्ररक प्रवचनोनो सार.
(प)
हवे, बहिरात्मपणुं छोडीने, अंतरात्मा थईने परमात्मपणुं प्रगट करवा माटे शिष्य पूछे छे के–प्रभो! ए
त्रणेनुं लक्षण शुं छे?–तेनो उत्तर कहे छेः–
बहिरात्मा शरीरादौ जातात्मभ्रांतिरांतरः ।
चित्तदोषात्मविभ्रांतिः परमात्माऽतिनिर्मलः ।। ५।।
शरीरादि बाह्य पदार्थोमां ‘आत्मा’ नी भ्रांति जे करे छे ते बहिरात्मा छे. अने राग–द्वेषादि दोषो तथा
चैतन्यस्वरूप आत्मा–तेमना संबंधमां जे भ्रांतिथी रहित छे ते अंतरात्मा छे. जे रागादि दोषने दोषरूपे जाणे छे, ने
पोताना चैतन्यस्वभावने स्वभावरूपे जाणे छे, जेने रागादिमां ‘आत्मा’ नी भ्रांति थती नथी, ने मलिनताथी भिन्न
पोताना शुध्धस्वभावने जे निःशंकपणे जाणे छे ते अंतरात्मा छे. अने जे अत्यंत निर्मळ छे–जेमना रागादि दोषो
सर्वथा टळी गया छे ने सर्वज्ञ परमपद जेमने प्रगटी गयुं छे, ते परमात्मा छे. ए प्रमाणे त्रण प्रकारना आत्मानुं
स्वरूप जाणवुं.
आ शरीरादि जड पदार्थो प्रगटपणे आत्माथी जुदा छे, ते कोई पदार्थो आत्माना नथी, आत्माथी बहार ज
छे, छतां तेने जे पोताना माने छे ते जीव बहिरात्मा छे. आ शरीर मारुं, हुं पुरुष, हुं स्त्री, हुं धोळो, हुं काळो, हुं
रागी, हुं द्वेषी, आ शरीरना कार्य हुं करुं ने शरीरादिनी क्रियाथी मने हित–अहित थाय एम माननार जीव बहिरात्मा
मिथ्याद्रष्टि छे, केम के ते पोताना आत्माने बाह्य पदार्थोथी भिन्न नथी जाणतो, पण बाह्य पदार्थोने ज आत्मा माने
छे. आवा लक्षणथी बहिरात्मपणुं ओळखीने ते छोडवा जेवुं छे.
ः १८ः
आत्मधर्मः १६४