
जे ओळखे छे ते अंतरात्मा छे. आवा लक्षणथी अंतरात्मपणुं ओळखीने ते प्रगट करवा जेवुं छे.
अज्ञानी अनादिकाळथी संसारमां परिभ्रमण कर रह्यो छे. देहादिथी भिन्न ने रागादि दोषोथी भिन्न शुद्ध
ज्ञाननंदस्वरूप हुं छुं–एवी आत्मानी ओळखाण करीने अंतरात्मा थवुं ते भवभ्रमणथी छूटवानो उपाय छे.
भ्रांतिरहित यर्थाथपणे जाणे छे. जीवने जीवरूपे जाणे छे, रागादिने रागादिरूपे जाणे छे, देहादिने के अजीवरूपे जाणे
छे. देहादि के रागादिने आत्मानुं स्वरूप ते मानता नथी.
राग–द्वेष–अज्ञान ते दुःखरूप भावो छे, एटले के आस्रव ने बंधरूप छे.
–आम बधा तत्त्वोने जेम छे तेम जाणीने, एक ज्ञानानंदस्वरूप पोताना आत्मामां ज आत्मबुद्धि करे छे,
सुखरूप जाणीने आदरे छे;–आवा जीवने अंतरात्मा कहे छे.
छे; वळी ज्ञान–वैराग्यरूप भाव आत्माने हितरूप होवा छतां तेमां ते प्रवृत्ति नथी करतो, तेमां तो अरुचि अने
कंटाळो करे छे, तथा राग–द्वेष–मोहरूप भावो जीवने अहितरूप होवा छतां तेमां निरंतर प्रवर्ते छे–तेनी रुचि छोडतो
नथी; आ प्रमाणे जीव–अजीव वगेरे तत्त्वोना स्वरूपमां भ्रांतिथी प्रवर्ते छे ते जीव बहिरात्मा छे.
ज्ञान–वैराग्यरूप भाव प्रगटे ते मने हितरूप छे, ने बाह्य पदार्थना आश्रये रागादिभावो थाय ते मने अहितरूप छे.
–आ प्रमाणे जीव अजीव वगेरे तत्त्वोनी प्रतीति करीने, अंतर्मुख चैतन्यस्वरूपमां वर्ते छे ते अंतरात्मा छे.
निकलपरमात्मा छे. चार घातीकर्मोना क्षयथी केवळज्ञानादि अनंतचतुष्टय तो बंनेने सरखां छे. अरहंत परमात्माने
चार अघाती कर्मो बाकी छे तेनो क्षणे क्षणे क्षय थतो जाय छे, बहारमां समवसरणादि दिव्य वैभव होय छे, तेओ
परमहितोपदेशक छे, हजी शरीरना संयोग सहित होवाथी ते सकल परमात्मा छे. सिध्धपरमात्मा आठे कर्मोथी रहित
लोकनी टोचे बिराजमाने छे, अनंत आनंदना अनुभवमां कृत कृत्यपणे सादिअनंतकाळ बिराजे छे, शरीरादिनो
संयोग छूटी गयो छे तेथी तेमने निकलपरमात्मा कहेवाय छे.
जैठः २४८३