Atmadharma magazine - Ank 164
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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विपुलाचलधाममां वीरशासन–प्रवर्तन
अनेक पावन तीर्थधामोथी शोभी रहेला मगधदेशनी राजगृही नगरीमां विपुलाचल पर्वत
उपर अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभुनुं समवसरण शोभी रह्युं छे...वैशाख सुद दसमे प्रभुजीने
केवळज्ञान थई गयुं छे अने बार सभामां भव्य जीवोनां टोळेटोळां प्रभुजीनी दिव्यदेशना झीलवा
माटे चातकनी जेम तलसी रह्यां छे.....के क्यारे प्रभुनी दिव्य देशना छूटे अने क्यारे ए दिव्य देशना
झीलीने पावन थईए?
..... पण प्रभुनो दिव्यध्वनि हजी छूटतो नथी. दिवसो पर दिवसो वीतता जाय छे.....
दिव्यध्वनि सुणवा माटे तरसता जीवो, भगवाननी परम उपशांत वीतरागी मुद्रा सामे नीरखी
नीरखीने दिवसो वीतावे छे.....
छांसठ छांसठ दिवसो वीती गया.....हवे तो अषाड मास पूरो थयो.....ने श्रावण वद एकम
(गुजराती अषाड वद एकम) आवी.....हंमेशना प्रभात करतां आजनुं प्रभात कांइक अनेरुं हतुं...
आजना सुप्रभाते गौतमस्वामी वीर प्रभुना समवसरणमां पधार्या.....वीरप्रभुना दिव्यवैभवने
देखतां एमनां अभिमान गळी गयां....ने भगवानना चरणे ए नम्रीभूत थया.....आ तरफ
भगवानना सर्वांगथी दिव्य ध्वनिनो धोध छूटयो.....तीर्थंकरप्रभुनी अमोघ देशना शरू थई.
अहा! केवी मधुर ए दिव्य देशना! अने ते सांभळनारा भव्य जीवोना हर्षनी शी वात!
श्रुतज्ञानरूपी अंजली भरीभरीने भव्य जीवोए भगवानना श्रीमुखथी झरतुं ए आनंदामृत
पीधुं.....अने घणाय सुपात्र जीवो ए तत्काल बोधक देशना झीलीने रत्नत्रयथी पावन थया.
गौतमस्वामी गणधरपद पाम्या.....ने दिव्यध्वनिमांथी झीलेलुं रहस्य बार अंगरूपे गुंथ्युं.....
अहा! ए धन्य दिवसे वीरप्रभुनी वाणी सांभळनार भव्य जीवोना आनंद अने
उल्लासनी शी वात!
वीर प्रभुना श्रीमुखथी वहेली ए स्याद्वाद–गंगानो पवित्र प्रवाह अछिन्नधाराए वहेतो
थको आजेय अनेक मुमुक्ष जीवोने पावन करी रह्यो छे...आ अषाड वद एकमे जगत्कल्याणकारी श्री
वीरशासनप्रवर्तनना २प१२ वर्ष पूरां थईने २प१३ मुं वर्ष प्रारंभ थशे. वीरशासन जयंतिना ए
मंगल महोत्सवने भारतना मुमुक्षुओ आजेय होंसपूर्वक ऊजवे छे–
धन्य श्री वीरप्रभु.....गौतमस्वामी.....धन्य ए दिव्यध्वनि नाद रे.....
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....
धन्य राजगृही.....धन्य विपुलाचल.....धन्य ए जिनदरबार रे.....
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....
धन्य श्रेणिक ने धन्य सभा ए.....धन्य धन्य नरनार रे.....
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....
मुद्रकः हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशकः स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ–भावनगर (सौराष्ट्र)