Atmadharma magazine - Ank 164
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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अमदावादनी स्वागत–पत्रिका
हे चैतन्यविहारी....मुक्तिना पावन यात्रिक!
अमदावादनी जैन जनतानुं आजे परम सौभाग्य छे के आपे अहीं
पधारी आपना पुनित चरणकमळथी अहींनी भूमिने पावन करी छे.
आपना आत्मकल्याणकारी, परम अध्यात्म प्रवचनरूपी अमृततत्त्वनुं
पान करीने भवआताप शमाववा माटेनो सुअवसर अमोने प्राप्त थयो छे तेथी
अमोने अंत्यंत हर्ष थाय छे. चैतन्य जीवन जीवी आप आत्मसंजीवनी मंत्र
आपो छो तेथी अमो सौ भाईबेनो आपनुं हार्दिक स्वागत करीए छीए.
आपनी पासेथी मुक्तिनो दिव्य संदेश परोक्षपणे तो मळ्‌या करतो हतो
ज, पण आजे ते दिव्य संदेश प्रत्यक्षपणे सांभळवा मळशे अने तेथी अनेक भव्य
जीवो पोतानुं हित करी शकशे ए निःसंदेह वात छे. मुक्तिनो आवो दिव्य संदेश
आप आपनार होवाथी अमो आपनुं अंतरना ऊमळकाथी स्वागत करीए छीए.
सांसारिक दुःखो टाळवा माटेनो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
एकतारूपनो अमोघ उपाय आप सदा समजावी रह्या छो ए माटे अमो अत्यंत
भक्तिभावपूर्वक आपनुं अति विनीतभावे सन्मान करीए छीए.
त्रिकाळी ज्ञायक स्वभावना आदरनो मुख्यपणे आपनो सदुपदेश छे; ते
माटे अमो आपनो परम आदर करीए छीए.
श्रीमद् राजचंद्रे जे अध्यात्मनां बीज जैन जगतमां रोप्यां हतां तेनुं आपे
अध्यात्मजल सिंची पोषण कर्युं एटलुं ज नहि पण साराये भारतवर्षमां तेनो
प्रचार अने प्रसार कर्यो. आपना ते सद्धर्मप्रवर्तकपणा माटे अमो आपनुं खरा
अंतःकरणपूर्वक स्वागत करीए छीए.
सोनगढनी कार्तिकी पूर्णिमाए आपे मंगळमय प्रस्थान करीने शाश्वत
तीर्थाधिराज श्री सम्मेदाचलनी ससंघ पावन यात्रा करी, सम्मेदशिखरमां तथा
वचमां आवतां अनेक सिद्धक्षेत्रोमां समश्रेणीए बिराजमान अनंत सिद्ध
भगवंतोनां दर्शन करावी अमारां जीवनने कृतकृत्य बनाव्यां, ते पावन यात्रानुं
अंतिम स्थळ अमदावाद छे अने त्यांथी दुःखना आत्यंतिक क्षयनो शुभ संदेश
सांभळवानुं महान भाग्य अमोने प्राप्त थाय छे ए माटे अंतरमां भक्तिभावे
आपनुं स्वागत करीए छीए.
आशा छे के आप अमारुं आ नम्र छतां आंतरिक भावपूर्ण स्वागत
स्वीकारी अमोने सौने उपकृत करशोजी.
अमदावाद मणीभाई जेसींगभाई
वैशाख शुद एकम (श्री कानजीस्वामी–स्वागत समितिना प्रमुख)