Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
श्रीवासुपूज्याय मः
भारतकी भव्य विभूति सौराष्ट्रके सन्त आत्मार्थी धर्ममूर्ति महान् पुंगव
माननीय श्री कानजीस्वामी के करकमलों में सादर अर्पित
अभिनन्दन पत्र
परम आदरणीय!
हमारा सौभाग्य है कि हम जिस महान् व्यक्ति के दर्शनों के पुण्यवेला की प्रतीक्षा
कर रहे थे, उन्हें आज अपने बीच पाकर प्रमुदित हो रहे हैं। हम अङ्गदेशीय
पंचकख्याणक भूमि चंपानगरीवासी आज धन्य हुए। हम अब आनंद–पुलकित होकर
फूले नहीं समाते, खासकर चंपापुर के आत्मज्ञानपिपासुओंके बीचमें आपके प्रति
श्रद्धाके सुमन समर्पित करते हुए कृतकृत्य हो रहे है।
भव्यात्मन्!
इस भौतिक युग की मिथ्या जगमगाहट में पडे हुए प्राणियों को प्राचीन
आत्मवादका रसास्वादन कराया। जिसप्रकार पूर्वाचार्य अपने पंच सहस्र शिष्यों के
साथ पधार नक्षत्रों के बीच में चन्द्रमा के समान शोभायमान हुए थे उसी प्रकार आप भी
आज पंच शत श्रावक–शिष्यों के साथ पधारकर कलिकालरूपी रजनी में नक्षत्रों के
बीच चन्द्रमा के समान प्रकाशमान हो रहे हैं।
अध्यात्मयोगिन्!
श्री आचार्यप्रवर कुंदकुंद प्रतिप्रादित समयसारका रहस्य अतिशय प्रभावक
प्रवचन द्वारा शुद्ध आत्मस्वरूप प्रकाशित कर श्रोताओंको आत्मदर्शन की प्रेरणा प्रदान
की एवं भव्योंको सच्चा मार्गप्रदर्शन किया।
कल्याणभागी!
आज अभ्युत्थान के युगमें सर्वोदय तीर्थकी आवश्यकता थी; आपने सोनगढ में
मुमुक्षु प्राणियों को अनेकान्त की रसलहरी प्रवाहित कर सर्वोदय तीर्थ प्रवर्तन किया,
इतना ही नहीं अपितु समग्र भारत भूमिमें तीर्थक्षेत्रोंकी यात्रा करते हुए सर्वोदय
तीर्थकी धारा प्रवाहित कर रहे हैं।
निष्णात तपस्वी!
संसार हिंसाकी लपटों की ओर दुतगतिसे अग्रसर हो रहा हैं, ऐसे बिकट
समयमें आप सद्रश महामानव के प्रवचन ही संसारमें सच्ची सुखशांति स्थापित कर
सकते हैं। अतः हमारी भगवान वासूपूज्य से करबद्ध प्रार्थना है कि आप दीर्घायु होकर
एक ऐसी संस्थाका संरक्षण करें जो पंचशील को प्रतिपादित करती हुई ‘अहिंसा परमो
धर्मः’ की ध्वजा फहराती रहे। जय वीर!
भागलपुर सिटी दिनांक ११–३–१९५७ विनीत––
भागलपुर के जैन बन्धु
મુદ્રક : હરિલાલ દેવચંદ શેઠ, આનંદ પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ભાવનગર
પ્રકાશક : સ્વાધ્યાય મંદિર ટ્રસ્ટવતી હરિલાલ દેવચંદ શેઠ–ભાવનગર