पंचकख्याणक भूमि चंपानगरीवासी आज धन्य हुए। हम अब आनंद–पुलकित होकर
फूले नहीं समाते, खासकर चंपापुर के आत्मज्ञानपिपासुओंके बीचमें आपके प्रति
श्रद्धाके सुमन समर्पित करते हुए कृतकृत्य हो रहे है।
इस भौतिक युग की मिथ्या जगमगाहट में पडे हुए प्राणियों को प्राचीन
साथ पधार नक्षत्रों के बीच में चन्द्रमा के समान शोभायमान हुए थे उसी प्रकार आप भी
आज पंच शत श्रावक–शिष्यों के साथ पधारकर कलिकालरूपी रजनी में नक्षत्रों के
बीच चन्द्रमा के समान प्रकाशमान हो रहे हैं।
श्री आचार्यप्रवर कुंदकुंद प्रतिप्रादित समयसारका रहस्य अतिशय प्रभावक
की एवं भव्योंको सच्चा मार्गप्रदर्शन किया।
आज अभ्युत्थान के युगमें सर्वोदय तीर्थकी आवश्यकता थी; आपने सोनगढ में
इतना ही नहीं अपितु समग्र भारत भूमिमें तीर्थक्षेत्रोंकी यात्रा करते हुए सर्वोदय
तीर्थकी धारा प्रवाहित कर रहे हैं।
संसार हिंसाकी लपटों की ओर दुतगतिसे अग्रसर हो रहा हैं, ऐसे बिकट
सकते हैं। अतः हमारी भगवान वासूपूज्य से करबद्ध प्रार्थना है कि आप दीर्घायु होकर
एक ऐसी संस्थाका संरक्षण करें जो पंचशील को प्रतिपादित करती हुई ‘अहिंसा परमो
धर्मः’ की ध्वजा फहराती रहे। जय वीर!