वर्ष चौदमुं : अंक ११ मो
अहो! जेणे आत्मानुं हित करवुं होय, खरुं सुख जोईतुं
राजचंद्र पण कहे छे के :– –
––एटले जे धर्मी छे अथवा धर्मनो खरो जिज्ञासु छे
कांई तेने वहालुं नथी. आचार्य भगवान कहे छे के: हे
भव्य!
नथी. जेम गायने पोताना वाछरडां प्रत्ये, अने बाळकने
पोतानी माता प्रत्ये केवो प्रेम होय छे? तेम धर्मीने पोताना
रत्नत्रयस्वभावरूप मोक्षमार्ग प्रत्ये अभेदबुद्धिथी
परमवात्सल्य होय छे. पोताने रत्नत्रयधर्ममां परमवात्सल्य
होवाथी बीजा जे जे जीवोमां रत्नत्रयधर्मने देखे छे तेमना
प्रत्ये पण तेने वात्सल्यनो उभरो आव्या विना रहेतो नथी.