Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४८३ :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
[३१–३२]
* एकत्वशक्ति तथा अनेकत्वशक्ति *
धर्मात्माए निज शुद्धात्मद्रव्यनो स्वीकार करीने परिणतिने ते
तरफ वाळी छे एटले तेने मुक्ति तरफ ज क्षणे क्षणे परिणमन चाली
रह्युं छे, ते मुक्तिपुरीनो प्रवासी थयो छे; तेथी “हवे मारे अनंत
संसार हशे? ” एवी शंका तेने ऊठती ज नथी. एने भवनो संदेह
टळ्‌यो छे ने ए मोक्षना पंथे वळ्‌यो छे. एनी श्रद्धानुं जोर स्व तरफ
वळ्‌युं छे, एना ज्ञाने शुद्धद्रव्यने स्वज्ञेय कर्युं छे, एनो पुरुषार्थ
स्वद्रव्य तरफ झूकी गयो छे; एने कषायोनुं वेदन छूटीने आत्माना
शांत रसनुं वेदन थयुं छे; आ रीते आखी परिणतिमां नवी जागृति
आवी गई छे.. ने ते जीव भगवानना मार्गमां भळ्‌यो छे. आवी
छे... धर्मीनी अपूर्व दशा!
ज्ञानस्वरूप आत्मामां अनंतशक्तिओ होवाथी ते अनेकान्तस्वरूप छे, तेनुं आ वर्णन चाले छे. त्रीस
शक्तिओनुं वर्णन थई गयुं छे, हवे एकत्वशक्ति तथा अनेकत्वशक्तिनुं स्वरूप कहे छे.
“अनेक पर्यायोमां व्यापक एवा एक द्रव्यमयपणारूप एकत्वशक्ति छे.” अने “एक द्रव्यथी व्याप्य जे
अनेक पर्यायो ते–मय–पणारूप अनेकत्व शक्ति छे.” ज्ञानमात्र आत्मा स्वयमेव आवी शक्तिवाळो छे.
ज्ञानस्वरूप आत्मा क्यांय परमां के विकारमां व्यापेलो नथी पण पोताना अनेक गुणपर्यायोमां एकपणे
व्यापेलो छे. धर्मी जाणे छे के मारी अनेक पर्यायोमां मारो आत्मा ज व्यापेलो छे, कर्म के विकार मारी पर्यायमां
व्यापेला नथी. विकार तो बीजी क्षणे ज नाश थई जाय छे, तेनामां एवी शक्ति नथी के लंबाईने बधी पर्यायोमां
व्यापे; आत्मस्वभावमां ज एवी शक्ति छे के बधी पर्यायोमां व्यापे छे. आवुं भान थतां व्यापक–व्याप्यनी
एकताथी (अर्थात् द्रव्य पर्याय–