संसारथी संतप्त जीवोने शांतिनी झांखी करावतुं अजोड आध्यात्मिक–मासिक
सम्यग्द्रष्टि वैरागी छे.
सम्यग्ज्ञानपूर्वक ज साचो वैराग्य होय छे; केमके वैराग्यनुं खरुं स्वरूप ए छे के समस्त रागथी विरक्त
थईने चैतन्यस्वभावनी सन्मुख परिणमवुं–आवो वैराग्य ज्ञानीने ज होय छे, ने तेओ कर्मथी मुक्त थाय छे.
जीव रक्त बांधे कर्मने, वैराग्य प्राप्त मुकाय छे,
ए जिनतणो उपदेश तेथी, न राच तुं कर्मो विषे. १५०.
जे जीव रागमां रक्त छे,–तेमां ज राची रह्यो छे ते कर्मोथी बंधाय छे, अने जे जीव रागथी भिन्न
पोताना ज्ञायकस्वभावने जाणीने ते स्वभावसन्मुख परिणम्यो छे ते जीव रागथी विरक्त छे, एटले के वैराग्य
प्राप्त छे; तेथी ते कर्मोथी छूटे छे. सम्यग्द्रष्टि गृहस्थपणामां होय तो पण आवा वैराग्यनुं परिणमन तेना
अंतरमां सदाय वर्ती ज रह्युं छे.
स्वभावमां एकता ते मोक्षनुं कारण छे ने रागमां एकता ते बंधनुं कारण छे,–आवो जिनवरदेवनो
उपदेश जाणीने हे जीव! तुं रागनी रुचि छोड ने स्वभावमां उपयोग जोड, जेथी तारी मुक्ति थाय.
–प्रवचनमांथी : : आसो वद चोथ