Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आनंदमय केवळज्ञान–प्रभात जगतने मंगळरूप हो
अभिनंदन
जगतमां सौथी श्रेष्ठ, परम हितरूप,
परम मंगलरूप अने परम शरणरूप एवुं
सिद्धपद सर्वथा अभिनंदनीय छे. तेथी ए
सिद्धपदने पामेला सिद्धभगवंतोने हृदयमां
स्थापीने आ नूतन वर्षना प्रारंभे तेमनुं
अभिनंदन करीए छीए.
सिद्धपदनी प्राप्तिना उपायभूत एवुं
साधकपद ते पण परम अभिनंदनीय छे;
तेथी ए सिद्धपदसाधक सर्वे संतोने पण
परमभक्तिपूर्वक अभिनंदन करीए छीए.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने
सम्यक्चारित्र–एवा रत्नत्रयस्वरूप जे
सिद्धपदनो मार्ग, ते मार्गने पण परम
आदरपूर्वक अभिनंदन करीए छीए. अने
श्री देव–गुरु–शास्त्रना प्रतापे नूतन–
वर्षमां आपणने आवा सिद्धपदना मार्गनो
लाभ थाओ. एवी मंगल भावना
भावीए छीए.
संपादकः रामजी माणेकचंद दोशी
वर्ष १पमुं अंक–१लो १६९ कारतकः वी. सं. २४८४