Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४८४ः१९ः
उत्तरः– ना, चैतन्य विनानो आत्मा कदी संभवतो नथी.
(९०) प्रश्नः– राग विनानो आत्मा होय?
उत्तरः– हा; राग विना पण आत्मलाभ संभवे छे. केवळज्ञानादि अवस्थामां वर्ततो आत्मा राग वगरनो ज छे.
(९१) प्रश्नः– राग वडे मोक्ष केम न थाय?
उत्तरः– मोक्षदशा थतां राग तो आत्मामांथी नीकळी जाय छे; जे आत्मामांथी नीकळी जाय तेना वडे मोक्षप्राप्ति
केम थाय?
(९२) प्रश्नः– रागादि ते मोक्षनुं कारण केम नथी?
उत्तरः– केमके ते रागादि आत्मानो स्वभाव नथी, माटे ते मोक्षनुं कारण नथी.
(९३) प्रश्नः– रागादि आत्मानो स्वभाव केम नथी?
उत्तरः– केमके जो रागादि आत्मानो स्वभाव होय तो आत्मा तेनाथी रहित कदी थई शके नहि, परंतु केवळज्ञानादि
अवस्थामां तो आत्मा राग रहित थई जाय छे, –माटे नक्की थाय छे के ते रागादि आत्मानो स्वभाव नथी.
(९४) प्रश्नः– रागादि ते आत्मा नथी तो ते कयुं तत्त्व छे?
उत्तरः– रागादि ते बंधतत्त्वस्वरूप छे.
(९प) प्रश्नः– रागादिक ते बंधतत्त्व छे, एम क्यारे जाण्युं कहेवाय?
उत्तरः– हुं रागादिकथी भिन्न ज्ञान स्वभावी छुं, ने आ रागादिक भावो माराथी भिन्न, मारा ज्ञानना ज्ञेय
छे–एम ज्यारे स्वसन्मुख थईने जाणे त्यारे आत्माने तेमज बंधतत्त्वने जाण्या कहेवाय.
(९६) प्रश्नः– मोक्षार्थी जीव केवो होय?
उत्तरः– मोक्षार्थी जीव मोक्षना कारणने आदरे छे पण बंधना कारणने आदरतो नथी, रागादि भावोने ते
बंधना कारण तरीके जाणे छे तेथी तेने ते आदरणीय मानतो नथी. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गने ते
आदरणीय माने छे.
(९३) प्रश्नः– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग छे ते कोने अवलंबे छे?
उत्तरः– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग छे ते शुद्ध आत्माने ज अवलंबे छे, रागने के परने
अवलंबतो नथी. परथी ने रागथी तो ते रत्नत्रयमार्ग अत्यंत उदासीन छे.
(९८) प्रश्नः– आवो मोक्षमार्ग प्रगट करवा माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तरः– आवो मोक्षमार्ग प्रगट करवा माटे प्रथम तो बराबर निर्णय करवो जोईए के मारुं मोक्षसाधन मारा
आत्माना अवलंबने छे, ए सिवाय बहारमां कोईना अवलंबने के रागना अवलंबने मारुं मोक्षसाधन नथी–आवो
निर्णय करीने, भेदज्ञानना बळे वारंवार अंतर्मुख थवानो अभ्यास करवाथी, शुद्धात्माना आश्रये मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
(९९) प्रश्नः– मोक्षार्थीओए केवा सिद्धांतनुं सेवन करवुं?
उत्तरः– मोक्षार्थीओ आ सिद्धांतनुं सेवन करो के ‘हुं तो शुद्ध चैतन्यमात्र एक परम ज्योति सदाय छुं; अने आ
जे भिन्न लक्षणवाळा विविध प्रकारना भावो प्रगट थाय छे ते हुं नथी, कारण के ते बधाय मने परद्रव्य छे.’
(१००) प्रश्नः– श्री गुरुनो आ उपदेश पामीने शुं करवुं?
उत्तरः– श्री गुरुनो उपदेश पामीने, आत्मा अने बंध बंनेना जुदा जुदा लक्षणो ओळखीने तेमने भिन्न
भिन्न अनुभववां; आत्माने तो पोताना चैतन्यस्वरूपमां मग्न करवो, ने बंधने पोताथी भिन्न जाणी छोडवो–आम
करवाथी मोक्षपद पमाय छे.
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कायानी विसारी माया स्वरूपे शमाया एवा,
निर्ग्रंथनो पंथ भवअंतनो उपाय छे.
श्रीमद् राजचंद्रना उपरोक्त वचनामृत आत्मधर्मना गया अंकमां छपायेल छे, परंतु तेमां “अमोघ” शब्द
भूलथी वधारे छपाई गयो छे.
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आत्मधर्मना ग्राहकोनेः–
‘आत्मधर्म’ मासिकने अंगे जे कंई फरियाद के सूचन करवानुं होय ते, पंदर दिवसमां “जैन स्वाध्याय मंदिर
ट्रस्ट–‘सोनगढ” ना सीरनामे करवी.
आ अंकथी ‘आत्मधर्म’ नुं नवुं वरस शरू थाय छे.
‘आत्मधर्म’ नुं लवाजम रूा. त्रणने बदले रूा. चार लेवानो निर्णय कर्यो छे.
आपे आपनुं नवा वरसनुं लवाजम न मोकल्युं होय तो का. शु. १प सुधीमां मोकली आपवा विनंती छे.
त्यारबाद वी. पी. करवामां आवशे.