Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः१८ः आत्मधर्मः १६९
(७२) प्रश्नः– राग ते आत्मानुं लक्षण केम नथी?
उत्तरः– केमके राग ते आत्माना समस्त गुण पर्यायोमां व्यापतो नथी, राग वगरनो पण आत्मा जोवामां
आवे छे, माटे ते आत्मानुं लक्षण नथी.
(७३) प्रश्नः– नरकमां रहेलो जीव शुं आवा आत्मानुं लक्ष करी शके?
उत्तरः– हा; सातमी नरकमां रहेलो नारकीनो जीव पण, अंतरमां चैतन्यलक्षणवडे आत्माने लक्षमां लईने
सम्यग्दर्शन प्रगट करी शके छे.
(७४) प्रश्नः– आ वात कोने समजाय तेवी छे?
उत्तरः– अहो! अंतरमां जेने आत्मानी भूख लागे–जिज्ञासा जागे–गरज थाय, के “अरे! मारा हितनो पंथ शो
छे!! आ भवदुःखनो हवे क्यांय आरो!! –अंतरमां मारो आत्मा शुं चीज छे!!” एवा जीवने आ वात समजाय तेवी छे.
(७प) प्रश्नः– केवा आत्माने लक्षमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे?
उत्तरः– चैतन्यलक्षणथी लक्षित आत्माने लक्षमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे.
(७६) प्रश्नः– मोक्षमार्ग शुं छे?
उत्तरः– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे.
(७७) प्रश्नः– ते मोक्षमार्ग कई रीते प्रगट थाय छे?
उत्तरः– चैतन्यलक्षणे लक्षित आत्माने लक्षमां लईने तेमां एकाग्र थतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
(७८) प्रश्नः– सांभळवा छतां आ वात न समजाय तो तेनुं शुं कारण?
उत्तरः– अंतरमां जेने आत्मानी खरी रुचि ने दरकार होय तेने आ वात समजायावगर रहे नहि; न समजाय
तो ते जीवनी पोतानी रुचिनो दोष छे.
(७९) प्रश्नः– लक्षण एटले शुं?
उत्तरः– लक्षण एटले वस्तुने ओळखवानुं चिह्न.
(८०) प्रश्नः– आत्मा कया चिह्न वडे ओळखाय छे?
उत्तरः– आत्मा चैतन्य–चिह्न वडे ज ओळखाय छे. ए सिवाय देहनी क्रिया वडे के रागादि वडे आत्मा
ओळखातो नथी.
(८१) प्रश्नः– रागवडे आत्मा केम ओळखातो नथी?
उत्तरः– केमके राग ते आत्मानुं लक्षण नथी, पण बंधनुं लक्षण छे.
(८२) प्रश्नः– रागने अने ज्ञानने एकता छे के नथी?
उत्तरः– ना, रागने अने ज्ञानने एकता नथी.
(८३) प्रश्नः– जो रागने अने ज्ञानने एकता नथी तो रागनी उत्पत्ति ज्ञाननी साथे ज केम देखाय छे?
उत्तरः– रागनी उत्पत्ति ज्ञाननी साथे ज देखाय छे ते तेमना एकपणाने लीधे नहि, पण तेमना ज्ञेय–
ज्ञायकपणानी अति निकटताने लीधे ज छे.
(८४) प्रश्नः– ज्ञानमां जे रागादिक जणाय छे ते शुं जाहेर करे छे?
उत्तरः– ज्ञानमां रागादिक जणाय छे ते तो ज्ञानना चेतकस्वभावने जाहेर करे छे, ते कांई ज्ञानना
रागादिपणाने जाहेर नथी करतुं.
(८प) प्रश्नः– ए रीते ज्ञान अने रागनी भिन्नता होवा छतां, तेमां एकता होवानो अज्ञानीने जे भ्रम छे ते
कई रीते छेदी शकाय?
उत्तरः– अज्ञानीनो ते भ्रम प्रज्ञाछीणी वडे ज अवश्य छेदी शकाय छे.
(८६) प्रश्नः– मोक्षार्थीए शुं करवुं?
उत्तरः– मोक्षार्थीए आत्मा अने बंध बंनेने भिन्न भिन्न लक्षण वडे ओळखीने प्रज्ञाछीणी वडे जुदा जुदा
करवा; ए प्रमाणे बंनेने भिन्न भिन्न करीने बंधने तो छोडवो ने चैतन्यस्वरूप आत्मामां मग्न थवुं.
(८७) प्रश्नः– प्रज्ञाछीणी वडे आत्मा अने बंधने जुदा करी शकाय छे एम कोण जाणे छे?
उत्तरः– आचार्यदेव कहे छे के प्रज्ञाछीणीवडे आत्मा अने बंधने छेदीने जुदा करी शकाय छे, एम अमे जाणीए
छीए. आ रीते जे कोई जीवो अंतरमां भेदज्ञान करे छे तेओने पोताने तेनी खबर पडे छे. पुरुषार्थ वडे अंतरमां
भेदज्ञान करे अने तेनी पोताने खबर न पडे एम बने नहि.
(८८) प्रश्नः– रागादि करतां चैतन्यनी अधिकता कई रीते छे?
उत्तरः– चैतन्य आत्मानी जेटली पर्यायमां व्यापतुं प्रतिभासे छे तेटला रागादि प्रतिभासता नथी, अर्थात्
चैतन्य तो आत्माना समस्त पर्यायोमां व्यापेलुं छे, त्यारे राग कांई आत्माना समस्त पर्यायोमां व्यापतो नथी; चैतन्य
विना तो आत्मा कदी होतो नथी, त्यारे राग विना तो आत्मा होय छे; आ रीते राग करतां चैतन्यनी अधिकता छे,
एटले ते बंनेनी भिन्नता ज छे एम समजवुं.
(८९) प्रश्नः– चैतन्य विनानो आत्मा होय?