
भिन्न भिन्न लक्षणो ओळखवा अने पछी तेमनी सूक्ष्म संधिनी वचमां प्रज्ञा–छीणीने उग्र पुरुषार्थवडे
पटकवी. ए रीते प्रज्ञाछीणीवडे आत्माने अने बंधने भिन्न करीने आत्माने तो ग्रहण करवो एटले के तेमां
एकाग्र थवुं, ने बंधने तो छोडवो; – आ मोक्षनो उपाय छे. तेनुं स्पष्टीकरण चाले छे.)
उत्तरः– प्रज्ञाछीणी वडे भेदज्ञान करतां ज आत्मामां मोक्षना संदेशा आवी जाय, आत्मामां सिद्धभगवान जेवा
उत्तरः– जेओ मोक्ष पाम्या तेओ प्रज्ञाछीणीवडे आत्मा अने बंधनुं भेदज्ञान करीने मोक्ष पाम्या छे.–
उत्तरः– आत्माने पकडवा माटे पहेलां तेनी रीत जाणवानी धीरज जोईए. पहेलां अंतरमां धीरजथी आत्माना
उत्तरः– आत्मानुं स्वलक्षण चैतन्य छे.
(६८) प्रश्नः– ते चैतन्यलक्षण केवुं छे?
उत्तरः– चैतन्यलक्षण अन्य द्रव्योथी असाधारण छे.
(६९) प्रश्नः– असाधारण एटले शुं?
उत्तरः– असाधारण एटले बीजामां न होय तेवुं. आत्मानुं चैतन्य लक्षण आत्मामां ज छे ने आत्मा सिवाय
उत्तरः– ते चैतन्यलक्षण जे जे गुणोमां ने पर्यायोमां रहेलुं छे ते सर्वे गुणो–पर्यायो आत्मा छे–एम लक्षित करवुं.
(७१) प्रश्नः– आत्मानुं हित करवा माटे कोने अग्र (मुख्य) करवुं?
उत्तरः– चैतन्यलक्षणने अग्र करवाथी आत्मा पकडाय छे ने आत्मानुं हित थाय छे; पण राग लक्षणने अग्र