हुं ज्ञायक स्वभाव छुं–एम अंर्तस्वभावना अनुभवपूर्वक ज्यां निःशंक प्रतीति थई त्यां समकिती
प्रकारना गुणो होय छे, ते गुणोनुं आ वर्णन चाले छे. समकितीनी निःशंकता, निःकांक्षता, निर्विचिकित्सा
अने अमूढद्रष्टि–ए चार अंगनुं वर्णन थई गयुं. हवे पांचमुं उपगूहन अंग बतावे छे.
आत्मशक्तिओ वधती जती होवाथी तेने “उपबृंहण” पण छे. चिदानंद स्वभाव हुं छुं,–एम अंतरमां
उपयोगने जोडयो त्यां गुणोनुं उपबृंहण अने रागादि विकारनुं उपगूहन थई गयुं. स्वभावनी शुद्धता
प्रगटी त्यां दोषोनुं उपगूहन थई गयुं. आत्माना ज्ञानानंदस्वरूपना अवलंबने क्षणे क्षणे धर्मात्माने
गुणनी शुद्धता वधती जाय छे ने दोषो टळता जाय छे–तेनुं नाम उपबृंहण अथवा उपगूहन छे. धर्मीनी
द्रष्टिमां अल्पदोषनी