Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः४ः आत्मधर्मः १६९
पाम्या.. अने... अनादिअनंतकाळमां
मोक्षगामी जीवने मात्र एक ज समय जेनी
प्राप्ति थाय छे एवा स्वभावऊर्ध्वगमनवडे
आप सिद्धालयमां लोकाग्रे पधार्या...
आपनां पावन चरणोथी..ने आपनां
मोक्षगमनथी पावन थयेली पावापुरी..आजे
पण भव्यजीवोने जाणे मोक्षमां बोलावी रही
छे..ए पावनभूमिमांथी आजे पण मोक्षना
रणकार गूंजी रह्या छे के हे जीवो! आत्मानुं
अंतिम ध्येय अने परमइष्ट एवुं सिद्धपद
भगवान अहींथी पाम्या..पद्मसरोवरना कमळ
पण जाणे ऊंचे भगवान तरफ नीहाळी–
नीहाळीने साक्षी पूरी रह्या छे केः भगवान,
पाणीमां कमळनी जेम, विभावोथी अने कर्मोथी
अलिप्त हता..ए अलिप्त भगवानना संगथी
अमे पण अलिप्त थई गया..
हे भगवान! आप सिद्धालयमां अनंत
सिद्धभगवंतोनी साथे वसता होवा छतां,
अभेदभक्तिना बळे साधक संतो पोताना
हृदयमां ऊतारीने, परमध्येयरूपे आपने ध्यावे
छे..ने ए ध्यानबळे आपना पुनित पगले
चाल्या आवे छे.
पावापुरी...! आपनां मोक्षनुं पवित्र
स्थान!! अहा! ए मोक्षधामने स्पर्शतां ज
मुमुक्षुनुं हैयुं आनंदथी नाची ऊठे छे..मुमुक्षुना
आत्मामां मोक्षमार्गनी स्फूरणा थाय छे..परम
स्वाश्रयरूप आपना मोक्षमार्गनुं त्यां स्मरण
थाय छे. मोक्षनो स्वाश्रित पंथ आपनां पवित्र
पद–चिह्नोथी आजे पण शोभी रह्यो छे, ने
स्वाश्रय तरफ झूकी–झूकीने अमे आपना पंथे..
आपना पुनित पगले पगले आवीए छीए.
हे नाथ! नमस्कार हो आपने..अने
आपना पुनित पंथने!