प्राप्ति थाय छे एवा स्वभावऊर्ध्वगमनवडे
आप सिद्धालयमां लोकाग्रे पधार्या...
पण भव्यजीवोने जाणे मोक्षमां बोलावी रही
छे..ए पावनभूमिमांथी आजे पण मोक्षना
रणकार गूंजी रह्या छे के हे जीवो! आत्मानुं
अंतिम ध्येय अने परमइष्ट एवुं सिद्धपद
भगवान अहींथी पाम्या..पद्मसरोवरना कमळ
पण जाणे ऊंचे भगवान तरफ नीहाळी–
नीहाळीने साक्षी पूरी रह्या छे केः भगवान,
पाणीमां कमळनी जेम, विभावोथी अने कर्मोथी
अलिप्त हता..ए अलिप्त भगवानना संगथी
अमे पण अलिप्त थई गया..
अभेदभक्तिना बळे साधक संतो पोताना
हृदयमां ऊतारीने, परमध्येयरूपे आपने ध्यावे
छे..ने ए ध्यानबळे आपना पुनित पगले
चाल्या आवे छे.
मुमुक्षुनुं हैयुं आनंदथी नाची ऊठे छे..मुमुक्षुना
आत्मामां मोक्षमार्गनी स्फूरणा थाय छे..परम
स्वाश्रयरूप आपना मोक्षमार्गनुं त्यां स्मरण
थाय छे. मोक्षनो स्वाश्रित पंथ आपनां पवित्र
पद–चिह्नोथी आजे पण शोभी रह्यो छे, ने
स्वाश्रय तरफ झूकी–झूकीने अमे आपना पंथे..
आपना पुनित पगले पगले आवीए छीए.