Atmadharma magazine - Ank 170
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४८४ःपः
छे.
अहा! गईकालनो प्रसंग चित्त सामे खडो थतां दिलमां खेद ऊपजे छे...शोक थाय छे, दुःख अने
वैराग्यनो खळभळाट मची जाय छे. हवे तो जीवनने कल्याणना पवित्र पंथ उपर वाळीने उज्जवळ
करवा माटे भगवती जिनदीक्षा अंगीकार करवानो अमारो अडग निश्चय छे. त्यारे बीजी तरफ कैकेयीए
विचित्र वरदान मांग्युं छे! अरे! कैकेयीने आम केम सूझयुं?–पण नहि, नहि; बधुं बराबर छे. पदार्थोनो
प्रवाह क्रमबद्ध पलटी रह्यो छे, तेने जाणवानो ज आत्मानो स्वभाव छे, फेरफार करवानो नहि. ठीक छे,
में कैकेयीने वचन आपेलुं छे, आर्य पुरुष बोलेला वचननुं पालन करवामां ज तेमनी फरज समजे छे.
मंत्रीः– प्रभो! आपनुं चित्त विह्वळ अने खेदखिन्न केम जणाय छे? शुं हुकम छे, फरमावो!
दशरथः–
मंत्रीजी! शुं हुकम फरमावुं? अमे गृहस्थाश्रममां रही जिनमंदिरोना जीर्णोद्धार कराव्या, भव्य जिनालयो
बंधावी वीतरागी जिनबिंबो स्थाप्या; शास्त्र अभ्यास माटे स्वाध्याय भवनो, अने जिनशासननी
प्रभावनाना अनेक मंगळ कार्यो कर्या. हवे आ संसारना विषयोथी अमारुं मन विरक्त थाय छे. अमे
हवे भगवती जिनदीक्षा अंगीकार करी जीवनने अडग पुरुषार्थनी कसोटीए चडावी आत्मकल्याण करी
लेवा मागीए छीए. आ संसारथी हवे बस थाव.
मंत्रीः– प्रभो! आवा मंगळ कार्य माटे आपनो मंगळभाव सफळ थाओ, परंतु आप चिंतामां केम छो?
दशरथः– मंत्रीजी! तमे जाणो छो के घोर युद्धना मेदानमां कटोकटीनी पळे कैकेयीए रथनुं सारथीपणुं करी आपणने
जीत अपावी हती, अने ए वखते प्रसन्न थईने में तेने वरदान आप्युं हतुं.
मंत्रीः– हा, प्रभो! ए वात मने बराबर सांभरे छे.
दशरथः– मंत्रीजी, त्यारे तेणे ते वरदान बाकी राख्युं हतुं, अने आजे ते पोताना वरदाननी मांगणी करे छे.
मंत्रीः– शा वरदाननी मांगणी करे छे? प्रभो!
दशरथः– शुं कहुं? बोलतां जीभ उपडती नथी, हृदय दुःखना भारथी हचमची जाय छे, अंतर अकळामण अनुभवे
छे. ज्यारे कुंवर रामना अभिषेकनी तडामार तैयारी चाली रही छे. त्यारे कैकेयी वरदान मांगे छे के
भरतने राजगादी उपर बेसाडो.
(आ वरदान मांगवा पाछळ कैकेयीनो कोई दुष्ट हेतु न हतो; परंतु दशरथ राजानी साथेसाथे ज्यारे
तेनो पुत्र भरत पण दीक्षा लेवा माटे तैयार थई गयो, त्यारे पति तेमज पुत्र बंनेनो एकसाथे वियोग
थतां तेने घणो आघात थयो, तेथी राज्याभिषेकने बहाने कदाच भरतने दीक्षा लेतो रोकी शकाय, ए
हेतुथी तेणे उपरोक्त वरदान मांग्युं हतुं.)
मंत्री (एक साथे)ः– हें! अरे, अमे आ शुं सांभळीए छीए?
मंत्रीः–
अहा, आर्यपुरुष रामचंद्रजीना राज्याभिषेकनी ज्यारे तडामार तैयारीओ चाली रही छे, आखी
अयोध्यानगरी ईंद्रपुरी समान शणगाराई रही छे, धजा–पताकाओथी नगरीनी सजावट थई गई छे;
ठेरठेर तोरणो अने मंडपो, दरवाजाओ अने रंगबेरंगी कमानोथी नगरी झळहळी रही छे, चोमेर
गोठवायेली दीपमाळाओनी रोशनी पासे स्वर्गना तेज पण झांखा लागे छे; अयोध्यानगरीनो एके एक
नगरजन अनेरा उत्साहथी रामचंद्रजीनो राज्याभिषेक महोत्सव ऊजववाना कार्यमां मशगुल थई रह्यो
छे...त्यारे रामने बदले भरतने राजगादी आपवानी वात आप करो छो!–शुं आ सत्य छे!!