करवा माटे भगवती जिनदीक्षा अंगीकार करवानो अमारो अडग निश्चय छे. त्यारे बीजी तरफ कैकेयीए
विचित्र वरदान मांग्युं छे! अरे! कैकेयीने आम केम सूझयुं?–पण नहि, नहि; बधुं बराबर छे. पदार्थोनो
प्रवाह क्रमबद्ध पलटी रह्यो छे, तेने जाणवानो ज आत्मानो स्वभाव छे, फेरफार करवानो नहि. ठीक छे,
में कैकेयीने वचन आपेलुं छे, आर्य पुरुष बोलेला वचननुं पालन करवामां ज तेमनी फरज समजे छे.
दशरथः–
बंधावी वीतरागी जिनबिंबो स्थाप्या; शास्त्र अभ्यास माटे स्वाध्याय भवनो, अने जिनशासननी
प्रभावनाना अनेक मंगळ कार्यो कर्या. हवे आ संसारना विषयोथी अमारुं मन विरक्त थाय छे. अमे
हवे भगवती जिनदीक्षा अंगीकार करी जीवनने अडग पुरुषार्थनी कसोटीए चडावी आत्मकल्याण करी
लेवा मागीए छीए. आ संसारथी हवे बस थाव.
जीत अपावी हती, अने ए वखते प्रसन्न थईने में तेने वरदान आप्युं हतुं.
छे. ज्यारे कुंवर रामना अभिषेकनी तडामार तैयारी चाली रही छे. त्यारे कैकेयी वरदान मांगे छे के
भरतने राजगादी उपर बेसाडो.
थतां तेने घणो आघात थयो, तेथी राज्याभिषेकने बहाने कदाच भरतने दीक्षा लेतो रोकी शकाय, ए
हेतुथी तेणे उपरोक्त वरदान मांग्युं हतुं.)
मंत्रीः–
अयोध्यानगरी ईंद्रपुरी समान शणगाराई रही छे, धजा–पताकाओथी नगरीनी सजावट थई गई छे;
ठेरठेर तोरणो अने मंडपो, दरवाजाओ अने रंगबेरंगी कमानोथी नगरी झळहळी रही छे, चोमेर
गोठवायेली दीपमाळाओनी रोशनी पासे स्वर्गना तेज पण झांखा लागे छे; अयोध्यानगरीनो एके एक
नगरजन अनेरा उत्साहथी रामचंद्रजीनो राज्याभिषेक महोत्सव ऊजववाना कार्यमां मशगुल थई रह्यो
छे...त्यारे रामने बदले भरतने राजगादी आपवानी वात आप करो छो!–शुं आ सत्य छे!!