ः४ः आत्मधर्मः १७०
भरत–वैराग्य
वींछीयाना भाईश्री हिंमतलाल वालजीभाईए बालपद्मपुराणना आधारे
आ संवाद तैयार कर्यो हतो; अने वींछीया–पाठशाळाना विद्यार्थीओए कारतक सुद
एकमना रोज सोनगढमां भजव्यो हतो. जिज्ञासुओने प्रिय होवाथी ते अहीं
प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे.
(श्री दशरथ राजा दरबार भरीने बेठा छे; सामंतो अने मंत्री तथा नायबमंत्री बाजुमां बेठा छे शरूआतमां
जिनेन्द्रभगवानना जयकारपूर्वक पांच बाळको नीचे मुजब मंगलाचरण करे छे.)
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुंदकुंदार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलं।।
सर्वमंगल्यमांगल्यम् सर्वकल्याणकारकं।
प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतु शासनम्।।
(गीत)
धन्य– मुनिश्वर आतमहितमें छोड दिया परिवार,
–कि तुमने छोडा सब घरबार.
धन छोडा वैभव सब छोडा, समजा जगत असार,
कि तुमने छोडा सब संसार.
धन्य भरतजी आतमहितमें छोड दिया परिवार,
कि तुमने छोडा सब संसार...
कायासे ममता को टारी,
करते सहन परिसह भारी;
पंच महाव्रतके हो धारी,
तीन रतन के बने भंडारी;
आत्मस्वरूपमें झूलते करते,
निज आतम उद्धार.. कि तुमने० (१)
रागद्वेष सब तुमने त्यागे,
वैर विरोध हृदयसे भागे;
परम आतमके अनुरागे,
वैर कर्म पलायन भागे;
सत्–सन्देश सुना भविजनका
करते बेडा पार...कि तुमने० (२)
होय दिगंबर वनमें विचरते,
निश्चल होय ध्यान जब धरते;
निजपदके आनंदमें झूलते,
उपशमरसकी धार वरसते;
मुद्रा सौम्य नीरखकर ‘वृद्धि’
नमता वारंवार... कि तुमने० (३)
धन्य भरतजी आतमहितमें
छोड दिया परिवार...कि तुमने...
दशरथः– अहो! आ राजपाट, राणीओ अने सुवर्णना आ राजमहेलो बधुं आजे तुच्छ भासे छे, क्षणिक अने
नाशवान जणाय छे. अरे! आ शरीरने पण गमे तेटली सजावटथी शणगारवामां आवे छतां काळक्रमे
ते शिथिल थई जाय छे, वीजळीना चमकारानी पेठे ते नाश पामी जाय छे. विश्वना कोई पदार्थो, माणेक
के महेलो, पत्नी के पुत्रो, ए कोई जीवने शरणभूत नथी. विश्वना पदार्थोमां क्यांय सुख, शांति के
समाधि नथी. अहो धन्य ते जीवन! धन्य ते मुनिपद!