आत्मधर्म
वर्ष पंदरमुंः अंक बीजो सम्पादक रामजी माणेकचंद दोशी मागशर २४८४
धन्य ते पुत्र...ने धन्य ते माता!
कलैयाकुंवर जेवा आठ आठ वर्षना राजकुमारने, आत्माना भान सहित वैराग्य थतां
आनंदमां लीनतानी ज्यारे भावना जागे छे, त्यारे माता पासे जईने दीक्षा माटे रजा मांगे छे
के हे माता! आत्माना परम आनंदने साधवा हुं हवे जाउं छुं...हे माता! सुखी थवा माटे हवे हुं
जाउं छुं...मातानी आंखमांथी आंसुनी धारा वहे छे ने पुत्रना रोमेरोमे वैराग्यनी छाया छवाई
गई छे. ते कहे छे के अरे माता! जनेता तरीके तुं मने सुखी करवा मांगे छे; तो हुं मारा सुखने
साधवा जाउं छुं, तुं मारा सुखमां विघ्न न करीश; बा! मारा आत्माना आनंदने साधवा हुं
जाउं छुं, तेमां तुं दुःखी थईने मने विघ्न न करीश...हे जनेता! मने रजा आप, हुं आत्माना
आनंदमां लीन थवा माटे जाउं छुं.
त्यारे, माता पण धर्मात्मा छे, ते पुत्रने कहे छे के बेटा! तारा सुखना पंथमां हुं विघ्न
नहि करुं. तारा सुखनो जे पंथ छे ते ज अमारो पंथ छे. मातानी आंखमां तो आंसुनी धार
चाली जाय छे ने वैराग्यथी कहे छेः हे पुत्र! आत्माना परम आनंदमां लीनता करवा माटे तुं
जाय छे, तो तारा सुखना पंथमां हुं विघ्न नहि करुं...हुं तने नहि रोकुं...मुनि थईने आत्माना
परम आनंदने साधवा माटे तारो आत्मा तैयार थयो छे, तेमां अमारुं अनुमोदन छे. बेटा! तुं
आत्माना निर्विकल्प आनंदरसने पी. अमारे पण ए ज करवा जेवुं छे.–आम माता पुत्रने रजा
आपे छे.
अहा! आठ वर्षनो कलैया कुंवर ज्यारे वैराग्यथी आ रीते माता पासे रजा मांगतो हशे,
ने माता ज्यारे वैराग्यपूर्वक तेने सुखपंथे विचरवानी रजा आपती हशे–ए प्रसंगनो देखाव
केवो हशे!!
पछी ए नानकडो राजकुंवर ज्यारे दीक्षा लईने मुनि थाय, एक हाथमां नानकडुं कमंडळ ने
बीजा हाथमां मोरपींछी लईने नीकळे,–त्यारे तो अहा! जाणे नानकडा सिद्धभगवान उपरथी
उतर्या! वैराग्यनो अबधूत देखाव! आनंदमां लीनता! वाह रे वाह!! धन्य तारी दशा!
अने पछी बे–त्रण दिवसे ज्यारे आहार माटे नीकळे, आनंदमां झूलता झूलता धीमेधीमे
चाल्या आवता होय, ने आहार माटे नानकडा बे हाथनी अंजलि जोडीने ऊभा होय...ए
देखाव केवो हशे!!
पछी तो ए आठ वर्षना मुनिराज आत्माना ध्यानमां लीन थईने केवळज्ञान प्रगटावीने
सिद्ध थई जाय.–आवी आत्मानी ताकात छे. अत्यारे पण विदेहक्षेत्रमां श्री सीमंधरादि
भगवान पासे आठ आठ वर्षना राजकुमारोनी दीक्षाना आवा प्रसंग बने छे.
(प्रवचनमांथी)