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त्यारे आवो प्रसंग उपस्थित थाय छे.
सांत्वन अनुभवे छे. मने ए ज विचार थाय छे के अहा! आ विश्वना खेल केवा न्यारा छे! आ
संयोग साथेना क्षणिक संबंधो केवा न्यारा छे!!
(सेनापति आवीने नमस्कार करे छे.)
जाणीने भरतना हैयामां आनंदनो पार नथी.
भरत जेवा वैरागी धर्मात्माने आनंद थाय तेमां आश्चर्य शुं छे?
जिनदीक्षा अंगीकार करवानो निर्णय करेल छे. जिनदीक्षा माटेनी घणाकाळनी भावना आजे पूरी थशे,
एथी ज ते अत्यंत आनंदित छे.
दशरथः–
जिनेन्द्रदेवनी दिव्यध्वनिमां आवेल सर्व पदार्थनी स्वतंत्रतानो ढंढेरो सत्य छे..क्रमबद्ध परिणमता
पदार्थो पोतपोताना उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य स्वभावने धारण करीने स्वतंत्र परिणमी रह्या छे. त्यां शेनो
हर्ष?–ने शेनो शोक? मात्र ज्ञान करवुं ते ज जीवनुं कर्तव्य छे..अहा! भरत पण शुं मारी साथे ज
दीक्षित थशे!
(भरत आवे छे, दरबारीओ ऊभा थई सन्मान करे छे; दशरथराजा तथा रामचंद्रजीने नमस्कार
करीने, भरत वैराग्यपूर्वक कहे छे–)
आप आज्ञा करो.
मांग्युं छे, माटे हाल थोडो वखत तो राज्य करो..हजी तमे बाळक छो..पछी वृद्ध उंमर थतां सुखेथी
जिनदीक्षा लेजो.
आयुष् ते तो जलना तरंग
पुरंदरी चाप अनंग रंग
शुं राचिये ज्यां क्षणनो प्रसंग?
वृद्ध–बाळक के युवान वच्चे भेदभाव राखतुं नथी....ते मृत्यु कोने खबर क्यारे आवी पहोंचे? माटे
आत्महितमां प्रमादी थवुं योग्य नथी, माटे मने आज्ञा आपो.
पालन करो..प्रजाजनो आपने विनंती करे छे. वळी मारी सलाह जो मानो तो हाल आप
गृहस्थाश्रममां रहीने व्यवहारधर्मनुं पालन करो, ते व्यवहारधर्मथी पण परंपरा मोक्ष थशे, समज्या?
तो पछी मुनि थवानी शी जरूर छे?
छे. पुण्यथी तो क्षणिक संयोगो मळीने छूटी जाय छे, तेनाथी जीवनुं कल्याण के मुक्ति थती नथी.
जिनेन्द्र भगवंतो जे मार्गे विचर्या अने