Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
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मोक्षमार्ग
हे भव्य! आवा मोक्षमार्गमां तारा आत्माने जोड.
समयसार गा. ४१०–११–१२मां आचार्य भगवान कहे छे के हे जीव!! शुद्ध आत्माना आश्रये
वर्तता सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज मोक्षमार्ग छे, माटे तेमां ज तुं तारा आत्माने जोड, ने अन्य
द्रव्योमां तारा आत्माने न जोड.
हे श्रावको! के हे श्रमणो! अणुव्रत के महाव्रत संबंधी जे शुभराग छे ते परद्रव्याश्रित छे, ते
आत्माने मोक्षनुं कारण नथी; माटे ते शुभरागने के श्रावक अगर श्रमणना बाह्य लिंगोने तमे मोक्षनुं
कारण न मानो; पण सम्यग्दर्शन – ज्ञान–चारित्रने ज मोक्षनुं कारण जाणीने तेमां ज आत्माने जोडो.
बधाय अर्हंत भगवंतोए शुद्ध आत्माना आश्रय वडे रत्नत्रयने साधीने, अने शरीराश्रित
द्रव्यलिंगने तथा व्रतादिना शुभ विकल्पोने छोडीने, मोक्षने साध्यो छे. आ रीते बधाय अर्हंतदेवोए
पण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ज मोक्षमार्गपणे उपास्यो छे; माटे ते ज एक मोक्षमार्ग छे–एम
निर्णय करीने हे जीव! तेमां ज तारा आत्माने जोड.
दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा बिंति
‘चारित्र–दर्शन–ज्ञानने बस मोक्षमार्ग जिनो कहे.’
बधाय अर्हंत भगवंतोए सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ज मोक्षमार्ग तरीके उपास्या छे ने तेने
ज मोक्षमार्ग कह्यो छे, तो हे जीव! तुं बीजी रीते मोक्षमार्ग क्यांथी लाव्यो? बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी;
माटे सम्यग्दर्शन–ज्ञान– चारित्रमां ज तारा आत्माने जोड.–आम सूत्रनी अनुमति छे, आम संतोनो
आदेश छे, ने आवो ज भगवाननो मार्ग छे
हे भव्य! सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गमां तारा आत्माने जोड.–
दंसणणाणचरिते अप्पाणं जुंज मोक्खपह
‘चारित्र–दर्शन–ज्ञानमां तुं जोड रे! निज आत्मने.’
हे मुमुक्षुओ! आ ज मोक्षमार्ग तमारे सेववा योग्य छे. केम के–
दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मा तत्त्वमात्मनः एक एव सदा सेव्यो मोक्षमार्गो मुमुक्षुणा
आत्मानुं तत्त्व–दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप छे; ने ते रत्नत्रयस्वरूप ज मोक्षमार्ग छे, माटे
मोक्षार्थी मुमुक्षुओए सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग एक ज सदा सेववा योग्य छे.
आवो स्पष्ट मोक्षमार्ग बतावीने आचार्यदेव प्रेरणा करे छे के–हे भव्य! आवा मोक्षमार्गमां तुं
तारा आत्माने स्थाप, तेनुं ज ध्यान कर, तेने ज अनुभव अने तेमां ज निरंतर विहार कर; अन्य
द्रव्योमां विहार न कर.
‘तुं स्थाप निजने मोक्षपंथे, ध्या, अनुभव तेहने,
तेमां ज नित्य विहार कर; नहि विहर परद्रव्यो विषे.
आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणाम ते ज नियमथी मोक्षमार्ग छे, माटे हे भव्य
जीवो! निरंतर तेनुं सेवन करो.
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने प्रकाशकः हरिलाल देवचंद शेठ आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर.