Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 25

background image
वर्ष १प मुं
अंक ४ थोे
माह
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१७२
‘अमे तो बाळक जेवा छीए’
गणधरो वगेरे गुरुजनो प्रत्ये अति विनयथी बाळक जेवा बनीने, श्री
पद्मप्रभ मुनिराज कहे छे केः अहा, गुणना दरीया गणधरो अने श्रुतधरोए जे
गूढगंभीर ऊंडा ऊंडा अनेक भावो आ परमागममां भर्यां छे ते बधा भावो
खोलवानी मारा जेवा मंदबुद्धिमां केवी ताकात?–ए गणधरादि जेटली अगाध
बुद्धि अमारामां नथी, तेमनी पासे तो अमे बाळक जेवा छीए. क्यां ए बुद्धिना
दरिया! ने क्यां हुं–छतां गुरुपरंपराथी जे कांई भावो अमने प्राप्त थया छे ते
अमारा अंतरमां वारंवार अति पुष्ट रुचिथी घूंटाय छे...फरी फरीने ते भावोनुं
मंथन चाल्या करे छे, अने तेथी भव्य जीवोना हितने माटे आ टीका पण रचाय
छे. अहा; संतोनी निर्मानता अने भद्रिकता तो जुओ! पोते ज्ञानना दरिया छे,
छतां गणधरो अने पूर्वाचार्यो पासे तो विनयथी बाळक जेवा बनीने कहे छे के
प्रभो! आपनी पासे तो अमे बाळक जेवा मंदबुद्धि छीए.
– प्रवचनमांथी