बीजा शरीरना संयोगमां हतो, त्यांथी ते शरीरने छोडीने अहीं आव्यो,–ए रीते आत्मा तो त्रिकाळ टकनार
तत्त्व छे, ने देह तो क्षणिक संयोगी छे. मारुं स्वरूप तो ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, शरीर–इन्द्रियो ते मारुं स्वरूप
नथी, ते तो जडनुं रूप छे; ते शरीरादि साथे मारे वास्तविक कांई संबंध नथी, तेनी साथेनो संबंध तोडीने
ज्ञानानंदस्वरूप साथे ज मारे संबंध जोडवा जेवो छे. मारा चिदानंदतत्त्व सिवाय जगतना कोई पदार्थो साथे मारे
एकतानो संबंध कदी पण नथी.–आम सर्व प्रकारे विचार करीने, अंतर्मुख चित्तथी ज्ञानानंदस्वरूप पोताना
आत्मानो निर्णय करवो ने देहादिकने पोताथी बाह्य–भिन्न जाणवा, ते सिद्धांतनो सार छे. आवी रीते
ज्ञानानंदस्वरूपनी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रतावडे परमात्मा थवानो प्रयत्न करवो जोईए. आ देह तो जड
छे, ते देहमांथी कांई परमात्मदशा नथी आवती, परमात्मदशा तो आत्मामांथी आवे छे; देहथी भिन्न आवा
आत्माने जाणीने तेमां एकाग्रतावडे परमात्मदशा थाय छे, माटे देहमां आत्मबुद्धि छोडीने, अंतरना
आत्मस्वरूपनी श्रद्धाथी अंतरात्मा थईने, परमात्मा थवानो उद्यम करवा योग्य छे.
निंदनीय प्रवृत्ति करे छेः ‘
चिदानंद तत्त्वने जाण्युं छे, अने जगतना जीवो आत्माने जाणीने बहिरात्मबुद्धिना
अनंत दुःखथी छूटे एवी करुणाबुद्धिथी पूज्यपादस्वामी कहे छे के–
छे–‘
!’
हणाई रह्या छेः आत्मानी सुध–बुध भूलीने आ जगत अचेत जेवुं थई गयुं छे, तेने
देखीने संतोनी करुणा आवे छे.
भूलीने कषाय अग्निमां बळजळीने बिचारा दुःखी थई रह्या छे, अरेरे! तेओ ठगाई
रह्या छे...भावमरणमां मरी रह्या छे, माटे अरे जीवो! तमे समजो के देहादि बाह्य पदार्थो
आत्माना नथी, आत्मा तो तेमनाथी जुदो ज्ञान ने आनंदस्वरूप छे; आवा आत्माने
जाण्ये–मान्ये–अनुभव्ये ज दुःख टळीने शांति–समाधि थाय छे.