Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १प मुं
अंक प मोे
फागण
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१७३
भगवाननो मार्ग
भगवाननो मार्ग अंतर्मुख छे;
श्रुतज्ञानना उपयोगने अंतर्मुख एकाग्र कर्या
वगर भगवानना मार्ग साथे आत्मानी
परिणतिनो मेळ बेसे नहि. श्रुतज्ञानने अंतर्मुख
करीने आत्मस्वभावमां एकाग्र थवानो ज
भगवाननो उपदेश छे; आ मार्ग विना मोक्ष
नथी. भगवानना मार्ग साथे अने शास्त्रोना
कथन साथे आत्मानी परिणतिनो मेळ मळवो
जोईए, तो ज भगवानना मार्गनी आराधना
करी कहेवाय, अने तो ज भगवाने कहेला
शास्त्रोनुं भावश्रवण कर्युं कहेवाय.
–पू. गुरुदेवः चर्चामांथी