आत्मामांथी केवी निःशंकता आवी जाय छे, तेनुं
आत्मस्पर्शी अद्भुत वर्णन पू. गुरुदेव अनेकवार करे छेः
अहीं पण ते बाबतमां गुरुदेव कहे छे के–“पहेलां नक्की
करो के आ जगतमां सर्वज्ञताने पामेला कोई आत्मा छे के
नहि? जो सर्वज्ञ छे, तो तेमने ते सर्वज्ञतारूपी कार्य कई
खाणमांथी आव्युं? चैतन्यशक्तिनी खाणमां सर्वज्ञतारूपी
कार्यनुं कारण थवानी ताकात पडी छे. आवी
चैतन्यशक्तिनी सन्मुख थईने सर्वज्ञनो स्वीकार करतां
अपूर्व पुरुषार्थ तेमां आवे छे. ‘सर्वज्ञनो स्वीकार करतां
पुरुषार्थ ऊडी जाय छे’ एम माने तेने तो घणी मोटी
स्थूळ भूल छे. केवळज्ञान अने तेना कारणनी प्रतीत
करतां स्वसन्मुख अपूर्व पुरुषार्थ ऊपडे छे, ते जीव
निःशंक थई जाय छे के मारा आत्माना आधारे सर्वज्ञनी
प्रतीत करीने मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ में शरू कर्यो छे, ने
सर्वज्ञना ज्ञानमां पण ए ज रीते आव्युं छे..हुं
अल्पकाळमां मोक्ष पामवानो छुं ने भगवानना ज्ञानमां
पण एम ज आव्युं छे.
केवळज्ञानी अर्हंत परमात्मानी प्रतीत करनारने आत्मानी आवी ताकात प्रतीतमां आवी ज जाय छे. केम के कार्यनी
प्रतीत करवा जतां तेना कारणनी प्रतीत पण भेगी आवी ज जाय छे. “कार्यमां आटली ताकात प्रगट थई तो तेना
कारणमां पण तेटली ताकात पडी ज छे” एम कार्य–कारणनी प्रतीत एक साथे ज थाय छे. कारणना स्वीकार वगर
कार्यनी प्रतीत थती नथी. कारण अने कार्य ए बेमांथी एकमां पण जेनी भूल छे तेने बंनेमां भूल छे.
एने जो ओळखे तो अपूर्व सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान थाय.