Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १७४
अद्वितीय अर्हत्शासन–प्रकाशक
पंचरत्न
(वीर सं. २४८४ पोष सुद ११ थी पोष वद एकम सुधीना प्रवचनोमांथी)
आखा प्रवचनसार शास्त्रनी कलगीनां रत्नो समान आ छेल्ली पांच
गाथाओ छे, ते वंचाय छे. पहेलां ते पंचरत्नोनो महिमा करवामां आवे छेः
आ शास्त्रनां मुगटमणि जेवां आ पांच निर्मळ रत्नो जयवंत वर्तो!
केवां छे आ पांच रत्नो? संक्षेपथी अर्हंत भगवानना समग्र अजोड
शासनने सर्व प्रकारे प्रकाशे छे; एटले आ पांच गाथारत्नोमां जे
वस्तुस्थिति कहेवाशे ते सर्वज्ञदेवना आखा शासनमां सर्वत्र लागु करीने
परीक्षा करवी अने आ पांच रत्नो संसार तथा मोक्षना विलक्षण पंथने
एटले के बंनेना भिन्नभिन्न मार्गने जगत समक्ष प्रसिद्ध करे छे. अहा!
आचार्यदेव कहे छे के अर्हंतदेवना समग्र शासनने संक्षेपथी प्रकाशनारा,
तेमज संसार–मोक्षनी विलक्षण पंथवाळी स्थितिने जगत समक्ष
प्रकाशनारा आ पंचरत्नो (गा. २७१ थी २७प सुधीना पांच सूत्रो)
जयवंत वर्तो.
पहेलुं रत्न
समयस्थ हो पण सेवी भ्रम
अयथा ग्रहे जे अर्थने,
अत्यंतफळ समृद्ध भावी
काळमां जीव ते भमे. २७१.
पंचरत्नोमां आ पहेलुं रत्न संसारतत्त्वने प्रगट करे छे, एटले के संसारतत्त्व कोने कहेवुं ते ओळखावे छे.
जैन शासनमां रहीने व्रत–महाव्रत पाळतो होवा छतां जे जीव मिथ्याद्रष्टिपणे विपरीततत्त्वोनी श्रद्धा करे छे, ते
जीव मिथ्यात्वने लीधे अनंत संसारमां परिभ्रमण करे छे, तेथी ते संसारतत्त्व छे; तेनुं स्वरूप आ पहेलुं रत्न प्रकाशे छे.
जेओ स्वयं अविवेकथी एटले के कर्मने लीधे नहि पण पोताना ज अज्ञानभावथी, पदार्थोने अन्यथा स्वरूपे ज
अंगीकार करे छे, तेओ भले द्रव्यलिंगी श्रमण थया होय तो पण संसारतत्त्व ज छे. जुओ, आ सूत्रो समग्र
जिनशासननुं रहस्य संक्षेपथी प्रकाशे छे, एटले कर्मना उदयथी अज्ञान थवानुं कह्युं होय तो ते निमित्तथी कथन छे, त्यां
पण आ सूत्रमां कह्या प्रमाणे समजी लेवुं के ते जीवने स्वयं अविवेकथी ज अज्ञान थवानुं कह्युं होय तो ते निमित्तथी
कथन छे, त्यां पण आ सूत्रमां कह्या प्रमाणे समजी लेवुं के ते जीवने स्वयं अविवेकथी ज अज्ञान थयुं छे, कर्मने लीधे नहि.