
नथी.
घडानी कर्ता छे ने कुंभारनो तो तेमां असद्भाव छे. घडो बनती वखते कुंभारनी हाजरी होवा छतां, घडो
तो कुंभारना कर्तापणा विना ज थाय छे.
उत्तरः– ना;
व्यापकपणुं नथी तेथी कुंभार घडानो कर्ता नथी, तेम आत्माना ज्ञानस्वभावने विकारनी साथे व्यापक–
व्याप्यपणुं नहि होवाथी, आत्माने विकार साथे कर्ताकर्मपणुं नथी.
उत्तरः– त्यां तो औदयिकभाव पण जीवनी पर्याय छे–एम बताववा माटे व्यवहारे तेने जीवनुं स्वतत्त्व कह्युं छे;
निश्चयथी ते विकारीभावोने पुदगलनां परिणाम कह्यां छे.
विकारमय नथी, जीवनो स्वभाव तो विकाररहित छे–ए रीते स्वभावद्रष्टिथी विकार ते जीवनो नथी,
पण पुद्गलना ज लक्षे थतो होवाथी ते पुद्गलनो ज छे एम जाणवुं.–एम बंने पडखां जाणीने
शुद्धस्वभावमां ढळतां पर्यायमांथी पण विकार टळी जाय छे, ए रीते जीव विकारनो साक्षात् अकर्ता थई
जाय छे, माटे परमार्थे जीव विकारनो कर्ता नथी. जो परमार्थे जीव विकारनो कर्ता होय तो ते कर्तापणुं कदी
छूटी शके नहि. पण अंर्तस्वभावनी सन्मुख थतां विकारनुं कर्तापणुं छूटी जाय छे, माटे जीव तेनो कर्ता
नथी. जीवना स्वभावना आश्रये तो सम्यग्दर्शनादि निर्मळ परिणाम ज थाय छे, माटे तेनो ज जीव कर्ता
छे, ने ते ज जीवनुं कर्म छे.
अज्ञानी छे.