Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १८ः आत्मधर्मः १७प
केमके कुंभार घडामां व्यापतो नथी एटले तेने घडा साथे व्याप्य–व्यापकपणुं नथी, तेथी ते घडानो कर्ता
नथी.
कुंभार ते परद्रव्य छे, ते परद्रव्यथी निरपेक्षपणे माटी पोते परिणमीने घडारूपे थाय छे, माटे माटी ज
घडानी कर्ता छे ने कुंभारनो तो तेमां असद्भाव छे. घडो बनती वखते कुंभारनी हाजरी होवा छतां, घडो
तो कुंभारना कर्तापणा विना ज थाय छे.
(११०) प्रश्नः– जेम माटी घडानी कर्ता छे, तेम आत्मा विकारनो कर्ता छे के नहि?
उत्तरः– ना;
केमके माटी अने घडाने तो व्याप्य–व्यापकपणुं छे, पण तेमनी जेम विकारनी साथे आत्माने व्याप्य–
व्यापकपणुं नथी, तेथी आत्माने विकारनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी. परंतु जेम कुंभारने घडा साथे व्याप्य–
व्यापकपणुं नथी तेथी कुंभार घडानो कर्ता नथी, तेम आत्माना ज्ञानस्वभावने विकारनी साथे व्यापक–
व्याप्यपणुं नहि होवाथी, आत्माने विकार साथे कर्ताकर्मपणुं नथी.
(१११) प्रश्नः–तत्त्वार्थसूत्र’ मां तो औदयिकभावने पण जीवनुं स्वतत्त्व कह्युं छे ने?
उत्तरः– त्यां तो औदयिकभाव पण जीवनी पर्याय छे–एम बताववा माटे व्यवहारे तेने जीवनुं स्वतत्त्व कह्युं छे;
पण ते जीवनो स्वभाव नथी, जीवनो ज्ञानस्वभाव विकारथी भिन्न छे,–एम ओळखाववा अहीं
निश्चयथी ते विकारीभावोने पुदगलनां परिणाम कह्यां छे.
(११२) प्रश्नः– विकारने घडीकमां जीवनां परिणाम कहो छो ने घडीकमां पुद्गलनां परिणाम कहो छो, तो अमारे
विकारने जीवनो मानवो के पुद्गलनो?
उत्तरः– ते विकार जीवनी ज पर्यायमां थाय छे ते अपेक्षाए तो तेने जीवनो जाणवो; पण जीवनो स्वभाव
विकारमय नथी, जीवनो स्वभाव तो विकाररहित छे–ए रीते स्वभावद्रष्टिथी विकार ते जीवनो नथी,
पण पुद्गलना ज लक्षे थतो होवाथी ते पुद्गलनो ज छे एम जाणवुं.–एम बंने पडखां जाणीने
शुद्धस्वभावमां ढळतां पर्यायमांथी पण विकार टळी जाय छे, ए रीते जीव विकारनो साक्षात् अकर्ता थई
जाय छे, माटे परमार्थे जीव विकारनो कर्ता नथी. जो परमार्थे जीव विकारनो कर्ता होय तो ते कर्तापणुं कदी
छूटी शके नहि. पण अंर्तस्वभावनी सन्मुख थतां विकारनुं कर्तापणुं छूटी जाय छे, माटे जीव तेनो कर्ता
नथी. जीवना स्वभावना आश्रये तो सम्यग्दर्शनादि निर्मळ परिणाम ज थाय छे, माटे तेनो ज जीव कर्ता
छे, ने ते ज जीवनुं कर्म छे.
–ए प्रमाणे जाणीने जे विकारना कर्तापणे नथी परिणमतो, पण स्वभावसन्मुख
थईने ज्ञानपरिणामना कर्तापणे ज परिणमे छे–ते ज्ञानी छे.–एनाथी विपरीत होय ते
अज्ञानी छे.