वैशाखः २४८४ ः २३ः
ज्ञान थयुं त्यारथी ज चैतन्यना अने रागना पृथक् पृथक् स्वादनुं स्वादन होय छे. धर्मीने य हजी राग तो होय, परंतु
रागना स्वादने चैतन्यना स्वादथी भिन्न जाणे छे, अने राग वखते य रागथी भिन्न चैतन्यना अतीन्द्रिय स्वादनुं अंश
वेदन तेने वर्ततुं होय छे.–आवी दशामां आनंदमां झूलतां झूलतां भगवान महावीरे आ छेल्ला जन्ममां सर्वज्ञपद साध्युं.
सर्वज्ञ थया पछी धर्मसभामां भगवाननो ध्वनि नीकळ्यो..तेमां भगवाने एम उपदेश्युं के हे जीवो! तमारा
चैतन्यनो स्वाद अने रागनो स्वाद भिन्न भिन्न छे, रागनो स्वाद ते खरेखर चैतन्यनो स्वाद नथी, माटे तेने
आत्माथी भिन्न जाणो..ने ते रागथी भिन्न एवा निज चैतन्यना स्वादने आस्वादो. आत्माना आवा अतीन्द्रिय
आनंदनुं अनुभवन करवुं ते धर्म छे. भगवाने आ अवतारमां पोतानुं पूर्ण कल्याण साध्युं ने जगतना जीवोने
कल्याणनो मार्ग दर्शाव्यो तेवा भगवाननो आ अवतार ते ‘जन्मकल्याणक’ छे.
भगवाने जे पूर्णानंद दशा प्रगट करी अने तेनो उपाय दर्शाव्यो तेने ओळखीने पोतामां तेवो उपाय प्रगट
करवो ते भगवाननो जन्मकल्याणक ऊजववानो खरो हेतु छे. भगवाननी खरी ओळखाण वगर भगवानना
जन्मकल्याणकनो खरो लाभ पोताने मळे नहि.
भगवान महावीर प्रभुनो आजे जन्मदिवस छे; भगवानना जन्मने मंगळ कहेवाय छे, केम के आत्मानी
पूर्णानंदरूप परमात्मदशा भगवाने आ जन्ममां प्रगट करी. आवा परमात्माने ओळखीने तेमना जेवो ज पोतानो
आत्मस्वभाव प्रतीतमां लेवो ते प्रथम सम्यग्दर्शनरूप मंगळ धर्म छे.
आत्मानी पूर्णानंददशा पामेला सर्वज्ञ ते देव छे, ते दशाना साधक संत ते गुरु छे; ने पूर्णानंद प्रगट
करवानो उपाय बतावनारी तेओनी वीतरागी वाणी ते शास्त्र छे. आवा देव–गुरु–शास्त्रने प्रथम जिज्ञासुए
ओळखवा जोईए. जेओ बहारना साधनथी के रागभावथी धर्म थवानुं मनावे तेओ साचा देव–गुरु के शास्त्र
नथी पण विपरीत छे.
साचा देव–गुरु–शास्त्रनो संयोग मळवो ते पण अनंतकाळमां महादुर्लभ छे; अने देव–गुरु–शास्त्रनो संयोग
मळ्या पछी पण तेने ओळखीने श्रद्धा थवी ते अति दुर्लभ छे; अने ते देव–गुरु–शास्त्रे कहेला चिदानंदस्वरूप आत्मानी
अंतर्मुख श्रद्धा थवी ते तो अनंतकाळमां कदी नहि करेल एवो अपूर्व धर्म छे. समकितीधर्मात्मा जाणे छे के परमार्थे
महान देव तो मारो आत्मा ज छे, आत्मामांथी ज परमात्मदशा आवशे, माटे मारो आत्मा ज मारो देव छे. ‘अरे
आत्मा! “शिवरमणी रमनार तुं तुंही देवनो देव”–एम अंदरथी भणकार आववा जोईए. एकवार पण
अंर्तस्वभावनी अपूर्व प्रतीत करे तो आत्मामांथी मुक्तिना भणकारा आवी जाय, के हवे अल्पकाळमां ज आत्मामांथी
मुक्तदशा प्रगटी जशे.
छेल्ला तीर्थंकर भगवान महावीर आजे छेल्ला अवतारमां जन्म्या, अने अहींना (–वांकानेरना) जिन
मंदिरमां तेमनी स्थापना पण आजे ज थई. ते भगवाने शुं कह्युं छे तेनी आ वात छे. भगवाने जिनशासनमां एम
कह्युं छे के अरे जीवो! परमात्मदशानी ताकात तमारा स्वभावमां ज भरेली छे, तेने चूकीने जे क्षणिक विकार (–राग–
द्वेष–अज्ञान) थाय छे ते संसार छे, ए सिवाय बहारना संयोगमां तमारो संसार नथी. संयोगथी गुण के अवगुण
नथी; सधनता ते कांई गुण नथी ने निर्धनता ते कांई दोष नथी. पण संयोगमां आत्मबुद्धि ते दोष छे, ने संयोगथी
पार चिदानंदतत्त्वमां द्रष्टि अने एकाग्रता करवी ते गुण छे.
सम्यग्दर्शन एटले आत्मानो स्वाद. ते स्वाद केवो? शुं दुधपाक जेवो?–ना; दूधपाकनो स्वाद तो जड छे. अंदर
रागनो स्वाद आवे ते पण विकारी छे, पण जडथी ने रागना स्वादथी पार, चैतन्यना आनंदनो अतीन्द्रियस्वाद
आवे,–ते सम्यग्दर्शन छे, ने त्यांथी धर्मनी शरूआत थाय छे. आवा सम्यग्दर्शन वगर शुभरागथी व्रत–तप वगेरे बधा
साधन कर्या.–अनंतवार कर्या, परंतु चैतन्यनी शांति न मळी, तेथी श्रीमद् राजचंद्र कहे छे के–
वह साधन वार अनंत कियो,
तदपि कछु हाथ हजु न पडयो;
अब कयों न विचारत है मनसे
कछु ओर रहा उन साधनसें.
जे भावथी संसारमां रखडयो तेनाथी जुदी जातनो मोक्षनो उपाय छे. जे भावथी संसारमां रखडयो तेनो जो
आदर थाय (एटले के रागनो जो आदर थाय) तो ते जीवने संसारनो थाक नथी लाग्यो, तेने चैतन्यनी
(अनुसंधान टाईटल पेज बीजा पर)