Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १७प
जन्म
अने ते जन्मोत्सव उजववानी रीत
चैत्र सुद १३ महावीर जन्मकल्याणक मंगल दिने
वांकानेर शहेरमां पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
भगवान महावीर प्रभुना जन्मकल्याणकनो आजे दिवस छे. भगवाननो आत्मा तो अनादिअनंत छे, तेनो
कांई नवो जन्म नथी थयो. भगवान महावीरनो आत्मा पण, भगवान थया पहेलां अज्ञानदशाथी संसारमां रखडतो
हतो; पण पछी आत्मानुं भान करीने तेने साधतां साधतां छेल्ला अवतारमां पूर्ण परमात्मा थया, ने निमित्त तरीके
अनेक जीवोना तारणहार तीर्थंकर थया तेथी तेमनो आ जन्म ‘कल्याणक’ छे.
जगतमां अनेक जीवो जन्मे छे, पण तेमना जन्मने ‘कल्याणक’ नथी कहेवातो; “जन्मजयंति” तो लौकिक छे,
ने “जन्मकल्याणक” ते अलौकिक छे. भगवानना जन्मदिवसने ‘जन्मजयंति’ नहि पण ‘जन्मकल्याणक’ कहेवाय छे.
जे जन्ममां पूर्णानंदरूप कल्याण साध्युं ते जन्म पण ‘कल्याणक’ छे, अने निमित्त तरीके जगतना बीजा जीवोने पण ते
कल्याणकारी छे.
पूर्वे आत्मानुं ज्ञान करवा छतां हजी राग बाकी रह्यो हतो तेथी भगवानने पूर्वे साधकदशामां ते रागने लीधे
उत्तम पुण्य बंधाया..तीर्थंकरनामकर्म बंधायुं. त्यांथी स्वर्गमां गया..ने त्यांथी छेल्ला अवतारमां त्रिशलामातानी कूखे
अवतर्या..अने आ चैत्र सुद तेरसे भगवान जन्म्या. इन्द्रोए तेनो महोत्सव कर्यो. देहना संयोग अपेक्षाए जन्म कह्यो;
बाकी भगवाननो आत्मा तो क्षणे क्षणे निर्मळ पर्यायनी शांतिमां ऊपजतो हतो. मातानी कूखमां हता त्यारे पण
भगवानने आत्मानुं भान हतुं, देहनो संयोग ते हुं नहि, हुं तो अनादिअनंत चैतन्यतत्त्व छुं–आवा सम्यग्ज्ञान
उपरांत अवधिज्ञान पण भगवानने हतुं.–आवा आत्मभान सहित अने त्रण ज्ञान सहित भगवान आजे जन्म्या.–
आ रीते भगवानने ओळखवा जोईए.
पछी त्रीस वर्षनी वये, कुमारावस्थामां ज बालब्रह्मचारीपणे भगवाने दीक्षा लीधी, “दीक्षा लीधी” एटले
चैतन्यना आनंदमां लीन थया. अतीन्द्रिय आनंदमां झूलतां झूलतां सर्वज्ञपदने साध्युं. साडाबार वर्ष सुधी चैतन्यना
आनंदमां झूलतां झूलतां चारित्र दशामां रह्या. भगवानने मुनिदशामां दुःख न हतुं, कष्ट न हतुं पण आनंदनी धारा
उल्लसती हती. धर्म करतां अंतरमां सुखनो अनुभव थाय छे. धर्ममां अने चारित्रमां सुख होय के दुःख? अज्ञानी
जीवो चारित्रने कष्टरूप–दुःखरूप माने छे; अरे भाई! दुःखरूप अने कष्टरूप तो आस्रव छे, ने संवर–निर्जरारूप धर्म तो
आनंदरूप छे–सुखरूप छे. धर्मीने आत्म–