
हतो; पण पछी आत्मानुं भान करीने तेने साधतां साधतां छेल्ला अवतारमां पूर्ण परमात्मा थया, ने निमित्त तरीके
अनेक जीवोना तारणहार तीर्थंकर थया तेथी तेमनो आ जन्म ‘कल्याणक’ छे.
जे जन्ममां पूर्णानंदरूप कल्याण साध्युं ते जन्म पण ‘कल्याणक’ छे, अने निमित्त तरीके जगतना बीजा जीवोने पण ते
कल्याणकारी छे.
अवतर्या..अने आ चैत्र सुद तेरसे भगवान जन्म्या. इन्द्रोए तेनो महोत्सव कर्यो. देहना संयोग अपेक्षाए जन्म कह्यो;
बाकी भगवाननो आत्मा तो क्षणे क्षणे निर्मळ पर्यायनी शांतिमां ऊपजतो हतो. मातानी कूखमां हता त्यारे पण
भगवानने आत्मानुं भान हतुं, देहनो संयोग ते हुं नहि, हुं तो अनादिअनंत चैतन्यतत्त्व छुं–आवा सम्यग्ज्ञान
उपरांत अवधिज्ञान पण भगवानने हतुं.–आवा आत्मभान सहित अने त्रण ज्ञान सहित भगवान आजे जन्म्या.–
आ रीते भगवानने ओळखवा जोईए.
आनंदमां झूलतां झूलतां चारित्र दशामां रह्या. भगवानने मुनिदशामां दुःख न हतुं, कष्ट न हतुं पण आनंदनी धारा
उल्लसती हती. धर्म करतां अंतरमां सुखनो अनुभव थाय छे. धर्ममां अने चारित्रमां सुख होय के दुःख? अज्ञानी
जीवो चारित्रने कष्टरूप–दुःखरूप माने छे; अरे भाई! दुःखरूप अने कष्टरूप तो आस्रव छे, ने संवर–निर्जरारूप धर्म तो
आनंदरूप छे–सुखरूप छे. धर्मीने आत्म–