Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय श्रावणः २४८४ः १३ः
स्व–स्वामीपणुं छे, विकार साथे पण स्व–स्वामीपणुं नथी. स्वभावमां वळीने एकाग्र थयो त्यां आत्मा पोते ज
पोताना शुद्धभावनो ज स्वामी छे, ए सिवाय बीजानो स्वामी पोते नथी, के पोतानो स्वामी बीजो नथी. पोताना
स्वभाव साथे एक्तारूप संबंध करीने तेनुं स्वामीपणुं जीवे कर्युं नथी ने परनुं स्वामीपणुं मान्युं छे. जो आ
‘स्वभावमात्र स्व–स्वामित्वरूप संबंधशक्ति’ ने ओळखे तो पर साथेनो संबंध तोडे ने स्वभावमां एक्तारूप स्व–
स्वामित्वसंबंध करे एटले साधकदशा थाय.
आत्माने स्व–स्वामिपणानो संबंध मात्र पोताना स्वभाव साथे ज छे. जो एम न होय ने पर साथे पण
संबंध होय तो, पर साथेनो संबंध तोडी, स्वभावमां एक्ता करीने शांतिनो अनुभव थई शके नहि,–परथी जुदो पडीने
पोताना स्वरूपमां समाई जई शके नहि. परंतु परथी विभक्त ने स्वरूपमां एकत्व थईने आत्मा पोतामां ज पोतानी
शांतिनुं वेदन करी शके छे, केमके तेने पोतानी साथे ज स्व–स्वामीपणानो संबंध छे. पोताना शांतिना वेदन माटे
आत्माने परनो संबंध करवो पडतो नथी. स्वशक्तिना बळे, परना संबंध वगर एकला स्वमां ज एक्ताथी आत्मा
पोतानी शांतिनो अनुभव करे छे.
स्वमां एकत्व ने परथी विभक्त एवो आत्मानो स्वभाव छे; छ कारक अने एक संबंध ए साते विभक्तिवडे
आचार्यदेवे आत्माने परथी विभक्त बताव्यो छे. संबंधशक्ति पण आत्मानो पर साथे संबंध नथी बतावती पण
पोतामां ज स्व–स्वामी–संबंध बतावीने पर साथेनो संबंध तोडावे छे, ए रीते परथी भिन्न आत्माने बतावे छे. जेणे
बधाथी विभक्त आत्माने जाण्यो तेणे बधी विभक्ति जाणी लीधी.
परना संबंधथी ओळखतां आत्मानुं वास्तविक स्वरूप ओळखातुं नथी. करोड–पति, लक्ष्मी–पति,
पृथ्वी–पति, भू–पति, स्त्रीनो पति–एम कहेवाय छे, पण खरेखर आत्मा ते लक्ष्मी, पृथ्वी के स्त्री वगेरेनो
स्वामी नथी, आ शरीरनो–स्वामी पण आत्मा नथी, आत्मा तो ज्ञानदर्शन–आनंदरूप स्व–भावोनो ज स्वामी
छे, ने ते ज आत्मानुं ‘स्व’ छे. स्व तो तेने कहेवाय के जे सदाय साथे रहे, कदी पोताथी जुदुं न पडे. शरीर
जुदुं पडे छे, राग जुदो पडे छे पण ज्ञान–दर्शन–आनंद आत्माथी जुदा नथी पडता, माटे तेनी साथे ज
आत्माने स्व–स्वामीसंबंध छे.
जेम, आत्मामां जीवनशक्ति जो न होय तो दस जड प्राणना संयोग वगर ते जीवी शके नहि परंतु
आत्मामां जीवनशक्ति होवाथी सिद्ध भगवंतो दस प्राण वगर ज एकला चैतन्य प्राणथी ज जीवे छे, ने ए
प्रमाणे बधाय आत्मामां जीवनशक्ति छे. तेम आत्मानी संबंधशक्तिथी जो मात्र पोतानी ज साथे स्व–
स्वामीत्वसंबंध न होय ने पर साथे पण स्व–स्वामीत्वसंबंध होय तो आत्मा परना संबंध वगर रही शके नहि;
परंतु देह–रागादि परना संबंध वगर ज एकला स्वभावमां ज स्व–स्वामित्व संबंधथी अनंता सिद्ध भगवंतो
शोभी रह्या छे; बधाय आत्मानो एवो ज स्वभाव छे. पर साथे संबंधथी ओळखाववो तेमां आत्मानी शोभा
नथी. पंचेन्द्रिय जीव, रागी जीव, कर्मथी बंधायेलो जीव–एम पर साथेना संबंधथी भगवान आत्माने
ओळखाववो ते तेनी महत्ताने लांछन लगाडवा जेवुं छे, एटले के ए रीते परना संबंधथी भगवान आत्मा खरा
स्वरूपे ओळखातो नथी. आत्मा तो पोताना ज्ञायक स्वभावनो ज स्वामी छे, ने ते ज तेनुं स्व छे; ते
ज्ञायकस्वभावथी आत्माने ओळखवो तेमां ज तेनी शोभा छे.
इन्द्रियो वगेरे पर साथेनो संबंध तोडीने आवा आत्मानो अनुभव करे त्यारे सर्वज्ञभगवाननी निश्चय
स्तुति करी कहेवाय; सर्वज्ञभगवाननी निश्चय स्तुतिनो संबंध सर्वज्ञ साथे नथी पण पोताना आत्मस्वभावनी
साथे ज छे. ज्यांसुधी सर्वज्ञ उपर ज लक्ष रहे ने पोताना आत्मस्वभावमां लक्ष न करे त्यांसुधी
सर्वज्ञभगवाननी निश्चयस्तुति थती नथी. पोतानो आत्मा ज सर्वज्ञशक्तिथी परिपूर्ण छे–एम प्रतीतमां लईने
स्वभाव साथे जेटली एक्ता करे तेटली सर्वज्ञ–भगवाननी निश्चय स्तुति छे; अने सर्वज्ञ तरफना बहुमाननो
भाव रहे ते व्यवहारस्तुति छे.
जेम पुत्रने माता साथे संबंध छे, स्त्रीने पति साथे संबंध छे, तेम धर्मने कोनी साथे संबंध छे? धर्मनो संबंध
कोई बीजा साथे नथी, पण धर्मी एवा पोताना आत्मा साथे ज धर्मनो संबंध छे.
शुं भगवानना आत्मा साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?–ना.
शुं महाविदेह वगेरे क्षेत्रनी साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?–ना.