Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १७८
शुं चोथो काळ वगेरे काळनी साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?–ना.
शुं रागादि भावो साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?–ना.
कोईपण परद्रव्य–परक्षेत्र–परकाळ के परभावनी साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध नथी, ते कोई आ आत्मानुं
स्व नथी, ने आ आत्मा तेमनो स्वामी नथी. आ आत्माने पोताना स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव साथे ज पोताना धर्मनो
संबंध छे. अनंतशक्तिना पिंडरूप शुद्धचैतन्यद्रव्य साथे ज धर्मनी एक्ता छे, असंख्य प्रदेशी चैतन्यक्षेत्र ते ज धर्मनुं क्षेत्र
छे; स्वभावमां अभेद थयेली स्व–परिणति ते ज धर्मनो काळ छे; ने ज्ञान–दर्शन–आनंद वगेरे अनंत गुणो ते ज
आत्माना धर्मना भाव छे. आवा स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव साथे ज आत्माना धर्मनो संबंध छे, ने तेनी साथे ज
आत्माने स्व–स्वामीपणुं छे.
प्रश्नः– आत्माने बीजा पदार्थो साथे भले संबंध न होय, पण कर्म साथे तो निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे ने?
उत्तरः– ना; पोताना स्वभाव साथे ज स्व–स्वामीत्व संबंध जाणीने, तेमां ज एक्तापणे जे परिणम्यो तेने कर्म
साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध तूटी गयो छे. जे जीव असंयोगी स्वभाव तरफ द्रष्टि करतो नथी ने कर्म साथेना
निमित्त–नैमित्तिक संबंधनी द्रष्टि छोडतो नथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. आत्माने एकांते कर्मनी साथेना संबंधवाळो ज
आत्माने ओळखे–तो ते जीव आत्माना शुद्ध स्वरूपने ओळखतो नथी. ज्यां मात्र पोताना स्वभाव साथे ज एक्ता
करीने, मात्र पोताना स्व–भाव साथे ज स्व–स्वामीत्वसंबंधपणे परिणमे छे त्यां कर्म साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध
पण क्यां रह्यो? आ रीते कर्म साथे आत्मानो संबंध नथी. साधकने पोताना स्वभावमां जेम जेम एक्ता थती जाय
तेम तेम कर्मनो संबंध तूटतो जाय छे. आ रीते संबंधशक्ति स्वभाव साथे संबंध करावीने कर्म साथेनो संबंध
तोडावनारी छे.
–४७ मी संबंधशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.
हे भव्य! कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण अने संबंध ए साते विभक्तिना
वर्णनद्वारा अमे तारा आत्माने परथी अत्यंत विभक्त बताव्यो, माटे हवे तारा आत्माने बधाथी
विभक्त, अने पोतानी ज्ञानादि अनंतशक्तिओ साथे एकमेक जाणीने तुं प्रसन्न था..स्वभावनो ज
स्वामी थईने पर साथे संबंधना मोहने छोड!
* स्वभावनो कर्ता थईने पर साथेनी कर्ताबुद्धि छोड.
* स्वभावना ज कर्मरूप थईने बीजा कर्मनी बुद्धि छोड.
* स्वभावने ज साधन बनावीने अन्य साधननी आशा छोड.
* स्वभावने ज संप्रदान बनावीने निर्मळभावने दे.
* स्वभावने ज अपादान बनावीने तेमांथी निर्मळता ले.
* स्वभावने ज अधिकरण बनावीने परनो आश्रय छोड.
* स्वभावनो ज स्वामी थईने तेनी साथे एक्तानो संबंध कर ने परनी साथेनो संबंध छोड.
‘आ मारुं ने हुं एनो’ एवी पर साथे एक्तानी बुद्धि छोड.
–आम समस्त परथी विभक्त ने निजस्वभावथी संयुक्त एवा पोताना आतमरामने
जाणीने तेना अनुभवथी तुं आनंदित था..तुं प्रसन्न था.
गणधरतूल्य श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे समयसारना परिशिष्टमां वर्णवेली
‘अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी ४७ शक्तिओ’ उपर, परम पूज्य अध्यात्ममूर्ति
कहानगुरुदेवना प्रवचनो द्वारा थयेलुं अद्भुत विवेचन अहीं पूरुं थयुं.. ते भव्यजीवोने
भगवान आत्मानी प्रसिद्धि करावो.
आवता अंके आ लेखमाळानो छेल्लो लेख प्रगट थशे; अने तेमां,
‘ज्ञानलक्षणवडे अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी प्रसिद्धि’ पूर्वक आ लेखमाळा
समाप्त थशे.